चुनाव प्रचार के दौरान मोदी सरकार अपनी उन्हीं फ्लैगशिप योजनाओं की कहीं कोई बात नहीं कर रही, जिनकी पिछले 4 साल के दौरान छाती ठोककर घोषणाएं हुई थीं। दरअसल ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि इस सरकार की ज्यादातर फ्लैगशिप योजनाएं विफल साबित हो चुकी हैं।
पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव की प्रक्रिया अब अपने आखिरी दौर में है। छत्तीसगढ़ में मतदान हो चुका है और मध्य प्रदेश और मिजोरम में चुनाव प्रचार थम गया है। लेकिन ऐसा पहली बार हुआ है कि प्रचार के दौरान मोदी सरकार अपनी उन्हीं फ्लैगशिप योजनाओं की कहीं कोई बात नहीं कर रही, जिनकी पिछले 4 साल के दौरान छाती ठोककर घोषणाएं हुई थीं। दरअसल ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि इस सरकार की ज्यादातर फ्लैगशिप योजनाएं विफल साबित हो चुकी हैं। और इसीलिए कहीं भी चुनाव प्रचार में पीएम मोदी या बीजेपी का कोई और नेता इन योजनाओं का जिक्र तक नहीं कर रहा है।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अहमद पटेल ने भी फ्लैगशिप योजनाओं के विफल होने और चुनाव प्रचार में उनका नाम तक नहीं लेने पर मोदी सरकार पर निशाना साधते हुए ट्वीट किया कि ‘‘इस पर ध्यान दीजिये कि अब इन्होंने (मोदी सरकार) ने स्मार्ट सिटी, स्टैंडअप इंडिया, स्टार्ट अप इंडिया और डिजिटल इंडिया के बारे में बात करनी बंद कर दी है। ये भले ही बात नहीं कर रहे हों, लेकिन भारत नहीं भूला है।”
Notice how they have stopped talking about Smart City, Stand up India,Skill India,Make in India,Start up India & Digital India
But India has not forgotten & neither they will be forgiven
— Ahmed Patel (@ahmedpatel) November 26, 2018
मोदी सरकार की नाकमियों में सबसे अव्वल नंबर पर मेक इन इंडिया, स्मार्ट सिटी और डिजिटल इंडिया और स्किल इंडिया जैसे कार्यक्रम शामिल हैं। डिजिटल इंडिया के मामले में मोदी सरकार की नाकामी का सबसे कमजोर पक्ष यह है कि पारदर्शिता की खातिर सरकारी योजनाओं का लाभ ग्रामीण क्षेत्रों तक पहुंचाने के लिए गांवों को इंटरनेट से जोड़ने वाली योजनाएं दम तोड़ रही हैं या कछुआ चाल से चल रही हैं। कई ग्रामीण इलाकों में डिजिटल व्यवस्था इसलिए दम तोड़ चुकी है, क्योंकि बहुत बड़ी आबादी अभी भी कंप्यूटर ज्ञान में निरक्षर है। ऐसे में यहां इंटरनेट सेवाएं सिर्फ कागजों में हैं।पूरे चुनाव प्रचार में किसानों की तकलीफों को दूर करने के बजाय बड़े उद्योगपतियों के प्रति हमदर्दी के आरोप में मोदी सरकार कटघरे में खड़ी रही। फसल के दाम न मिलने और सूखे से प्रभावित अचंलों में किसानों और ग्रामीण भारत की मुश्किलें बदतर होती गई हैं।सूचना तकनीक से लेकर रोजगार और मेक इन इंडिया जैसी योजनाओं को पूरे जोशखरोश से शुरू किया गया था। लेकिन भारत आज भी चीन से सस्ता सामान मंगाने वाला सबसे बड़ा देश बना हुआ है। मेक इन इंडिया के तहत दावा किया गया था कि भारत को कुछ साल बाद चीन के समकक्ष लाकर खड़ा किया जाएगा। इसके लिए बड़े निवेशकों को आमंत्रित करने की भी पीएम मोदी के विदेश दौरों के दौरान बातें हुईं, लेकिन सरकार के भीतरी सूत्र मानते हैं कि भारत में चार वषों में ऐसा कोई बड़ा उद्योग और कल कारखाना विकसित नहीं हुआ है, जिसके बूते पर कुछ उपलब्घियों का दावा किया जा सके।सरकार के समर्थन में खुलकर सामने आने वाले कई विशेषज्ञ अब उसका बचाव भी नहीं कर रहे। उनमें से ज्यादातर का स्पष्ट मानना है कि छोटे-बड़े उद्योगों के विस्तार और निवेशकों को लुभाने का पूरा फंडा ही इसलिए नाकाम हुआ क्योंकि नोटबंदी के तत्काल बाद जीएसटी की मार ने निवेशकों और उद्योगों के विस्तार को सबसे बड़ी चोट पहुंचायी है।सबसे अहम बात यह है कि विभिन्न मंत्रालयों से जुड़ी इन फ्लैगशिप योजनाओं पर सीधे प्रधानमंत्री कार्यालय की निगाह रहती है और प्रगति की रिपोर्ट समय-समय पर मंत्रालयों से तलब की जाती रही है। लेकिन पिछले कुछ माह से सारी बातें धीरे-धीरे ठंडे बस्ते में डाल दी गईं। सरकारी अधिकारियों का कहना है कि अड़चनें, बाधाएं इसलिए भी आईं क्योंकि सरकार के पास उत्पादन और निर्माण क्षेत्र में पांव आगे बढ़ाने के लिए बुनियादी ढांचा ही उपलब्ध नहीं है।बुनियादी तकनीक और इंजीनियरिंग के क्षेत्र में भारतीय नौजवान और यहां का कौशल प्रशिक्षण चीन के मुकाबले कहीं पीछे है। हालांकि, भारतीय युवाओं ने अंग्रेजी और सॉफ्टवेयर के क्षेत्र में यूरोप और अमेरिकी बाजार में कई नये कीर्तिमान स्थापित किये हैं, लेकिन मेक इन इंडिया के मोर्चे पर मोदी सरकार के पास कुछ भी खास बताने को नहीं है। जब मोदी सरकार की ये योजनाएं पिछले दो सालों में अपने लक्ष्यों में पिछड़ती गईं तो नया नारा उछाला गया कि अब 2022 तक इन योजनाओं को अमलीजामा पहनाया जाएगा।प्रधानमंत्री जन आवास योजना का भी यही हाल है। दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में आवास सबसे विकट समस्या है। दो साल पहले घोषणा की गई थी कि अगले चार साल में 2 करोड़ आवासहीन लोगों को 2022 तक घर मुहैया करा दिये जांएगे। दावा किया गया था कि इस पर 2 लाख करोड़ रुपये का बजट खर्च होगा। अब इस योजना को भी हवा में उछाल दिया गया। अपने ही चार साल पुराने दावों पर सरकार सिर्फ अंधेरे में तीर चला रही है।
मोदी सरकार की देश में 100 स्मार्ट सिटी विकसित करने की योजना भी उसके अपने कारणों से नाकाम हो गई। मार्च 2018 में शहरी विकास मामलों की संसदीय समिति ने पाया कि स्मार्ट शहरों की घोषणाएं तो हुईं हैं, लेकिन उनके लिए बजट आवंटन नहीं हुआ है। इसका नतीज ये हुआ कि कई क्षेत्रों में रत्तीभर भी काम आगे नहीं बढ़ सका। मोदी सरकार को हाल में अयोध्या में आयोजित संत समागम में गंगा सफाई के मामले में सबसे ज्यादा खरी-खोटी सुननी पड़ी, क्योंकि गंगा सफाई अभियान मोदी सरकार की नाकामियों का जीता जागता उदाहरण है।
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