अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर पूरे देश में गुरुवार को विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं. भारतीय जनता पार्टी के नेता मंगल पांडे की अगुवाई वाले बिहार के स्वास्थ्य विभाग ने भी ऐसे आयोजन किए हैं. राज्य स्तरीय आयोजन राजधानी पटना के पाटलिपुत्र स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स में रखा गया. लेकिन ख़बराें की मानें तो इसमें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सहित जनता दल-एकीकृत (जेडीयू) के पदाधिकारियों/नेताओं ने हिस्सा नहीं लिया. इससे सियासी अटकलाें को हवा मिली है.
सूत्रों की मानें जेडीयू ने योग दिवस के कार्यक्रमों से दूरी बनाने का फ़ैसला दो कारणों से लिया है. पहला- योग-ध्यान जैसी प्रक्रिया को अक्सर और ज्यादातर एक धर्मविशेष से जोड़ने के कारण पार्टी को लगता है कि ऐसे आयोजनों में शामिल होने पर उसकी धर्मनिरपेक्ष छवि को धक्का लग सकता है. द टाइम्स ऑफ इंडिया से बातचीत में जेडीयू की बिहार इकाई के अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह ने कहा भी, ‘योग को किसी सहभागिता से नहीं जोड़ा जाना चाहिए. वह तो कहीं भी, कभी भी किया जा सकता है. लोग तो अपने घर में भी योग करते हैं.’
हालांकि योग दिवस के कार्यक्रमों से जेडीयू की इस बेरुख़ी का दूसरा पहलू द एशियन एज़ की ख़बर पेश करती है. इसके मुताबिक जेडीयू के कई पदाधिकारियों को अब लगने लगा है कि भाजपा की अगुवाई वाले एनडीए (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) में फिर शामिल होने का फैसला ग़लत था. मौज़ूदा दौर में भाजपा नेतृत्व जिस तरह की रीति-नीति पर चल रहा है उससे पार्टी (जेडीयू) के जनाधार को नुक़सान पहुंच सकता है. इसलिए नीतीश लगातार अपनी अलग राह का संकेत दे रहे हैं. योग दिवस के कार्यक्रमों से दूरी भी उसी का हिस्सा है.
इस आकलन का आधार भी ठीक-ठाक दिखता है. ख़ास तौर पर पिछले कुछ दिनाें में सामने आई ऐसी ही कुछ और ख़बरों के मद्देनज़र. जैसे कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने जब उपराज्यपाल अनिल बैजल के दफ़्तर में नौ दिन तक धरना दिया तो नीतीश ने उनका समर्थन किया. ऐसे ही जब आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने नीति आयोग की सामान्य परिषद की बैठक में उनके राज्य को विशेष दर्जा देने की मांग की तो नीतीश उनके समर्थन में भी आगे आए. साथ ही बिहार के लिए भी विशेष दर्जे की मांग कर दी थी.
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