हमारा स्मार्टफोन और डाटा सेंटर, मानव स्वास्थ्य के लिए ही नहीं, पर्यावरण के लिए भी सर्वाधिक घातक है

टेक्नोलॉजी हमारे जीवन को आसान करने में अहम भूमिका अदा की है, लेकिन दूसरी तरफ इसके कई दुष्परिणाम भी सामने आ रहे हैं। स्मार्टफोन की बात करें तो इसने मीलों की दूरी को महज चंद बटनों तक समेट दिया है, लेकिन ये टेक्नोलॉजी हमारे भविष्य के लिए किस कदर घातक हो सकती है इससे अभी हम पूरी तरह से परिचित नहीं हैं। एक अध्ययन में सामने आया है कि सूचना और संचार प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में स्मार्टफोन और डाटा सेंटर ऐसी चीजें हैं, जो वर्ष 2040 तक वातावरण के लिए सर्वाधिक घातक साबित होंगे। इसकी वजह इनका अत्याधिक ऊर्जा का दोहन किया जाना है।कनाडा स्थित मैकमास्टर यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए अध्ययन में यह बात सामने आई है। शोधकर्ताओं ने स्मार्टफोन, लैपटॉप, टैबलेट, डेस्कटॉप के साथ डाटा सेंटर और कम्यूनिकेशन नेटवर्क की वृद्धि का अध्ययन किया। मैकमास्टर में एसोसिएट प्रोफेसर लोटफी बेलखिर के मुताबिक, अध्ययन के दौरान हमने पाया कि संपूर्ण रूप से सूचना एवं संचार तकनीक (आइसीटी) इंडस्ट्री तेजी से बढ़ रही है।आज इसकी हिस्सेदारी 1.5 फीसद है। यदि इसकी वृद्धि इसी दर से जारी रही तो 2040 तक वैश्विक स्तर पर यह 14 फीसद तक हो जाएगी। ये हिस्सेदारी दुनियाभर में परिवहन क्षेत्र की करीब आधी होगी। कुल मिलाकर कहें तो इस इंडस्ट्री का फैलाव बहुत अधिक हो जाएगा। बकौल लोटफी इतनी अधिक तेजी से वृद्धि का नुकसान हमें उठाना पड़ेगा। हर संदेश, फोन कॉल और वीडियो को अपलोड और डाउलोड करने का काम डाटा सेंटर करता है। टेलीकम्यूनिकेशन नेटवर्क और डाटा सेंटर को इस कार्य के लिए अत्याधिक विद्युत ऊर्जा की आवश्यकता होती है। बहुत से डाटा सेंटर बिजली के लिए जीवाश्म ईंधन का प्रयोग करते हैं। यह ऊर्जा की खपत हमें दिखाई नहीं देती। हम तो बस ज्यादा से ज्यादा स्मार्टफोन का प्रयोग करते हैं और वीडियो, ऑडियो डाउनलोड और अपलोड में लगे रहते हैं। जब ये क्षेत्र 2040 में बहुत अधिक बढ़ चुका होगा तो ऊर्जा की इसकी मांग भी बहुत अधिक बढ़ चुकी होगी। इसके चलते ये पर्यावरण के लिए नुकसानदेह होगा। शोधकर्ताओं का कहना है कि स्मार्टफोन पर्यावरण के लिए 2020 तक किसी भी चीज से ज्यादा नुकसानदेह होंगे। स्मार्टफोन चिप और मदरबोर्ड के लिए भी बहुत अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है। ये कीमती धातुओं से बने होते हैं, जिनकी कीमत बहुत अधिक होती है। शोधकर्ताओं के मुताबिक, इसके अलावा स्मार्टफोन की उम्र भी कम होती है। इसके परिणाम स्वरूप कंपनियां इन्हें बहुत अधिक संख्या में बनाती हैं।

आसान शब्दों में कहें तो इनका खराब होना और कंपनियों द्वारा इनका निर्माण किया जाना एक सतत प्रक्रिया बन चुकी है। इसके चलते इनके मदर बोर्ड और चिप भी निरंतर बनते रहते हैं। लोटफी के मुताबिक, हमारे अध्ययन में सामने आया है कि 2020 तक एक स्मार्टफोन द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली ऊर्जा एक पीसी या लैपटॉप से भी अधिक होने वाली है ।

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