सीएजी की रिपोर्ट में खुलासा, पांच साल में 90 हजार करोड़ रुपये खर्च, फिर भी 16 करोड़ भारतीयों को साफ पेयजल नहीं

देश में सरकारी योजनाएं और उनका जमीनी स्तर पर लागू होने में कितना अंतर है यह भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (सीएजी) की रिपोर्ट से समझा जा सकता है। यही नहीं योजनाओं को लागू करने में जो पैसा खर्च किया जाता है उसका भी ज़मीन पर कहीं अता-पता नहीं होता। सीएजी के मुताबिक साफ पेयजल के लिए भारत सरकार ने पांच सालों में 89,956 करोड़ रुपये का 90 फीसदी पैसा 2017 तक खर्च कर डाले हैं। लेकिन, देश की 16 करोड़ से अधिक आबादी अभी भी साफ पीने वाले पानी से महरूम है। नेशनल रूरल ड्रिंकिंग वाटर प्रोग्राम (NRDWP) के तहत 35 फीसदी ग्रामीण इलाकों को साफ पानी पहुंचाने के लिए चिन्हित किया गया। जिसके तहत पानी के कनेक्शन के साथ रोजाना प्रति व्यक्ति 40 लीटर पानी देने की बात थी। इसमें सिर्फ आधा ही काम पूरा हो पाया। काम की इस रफ्तार और पैसों की खपत को देखते हुए सरकारी कामकाज की शैली का अंदाजा लगाया जा सकता है।

NRDWP केंद्र द्वारा चलाई गयी योजना है। जिसका लक्ष्य देश के हर शख्स को पीने से लेकर खाना बनाने जैसी तमाम जरूरतों के लिए साफ पानी मुहैया कराना है। इस स्कीम के तहत राज्य सरकारों को फाइनैंशल और टेक्निकल सहयोग केंद्र सरकार पूरी तरह वहन करती है। हालांकि अगर दूसरे देशों से भारत की तुलना की जाए तो इस स्थिति में रिजल्ट थोड़े सुकून जरूर देंगे। मार्च 2018 में ‘इंडिया स्पेंड’ की रिपोर्ट के मुताबिक आम भारतीयों को स्वच्छ पेयजल किसी दूसरे देश के नागरिकों से कहीं ज्यादा मिलता है। हालांकि, देश की आबादी पर गौर करें तो तकरीबन 16 करोड़ से अधिक आबादी गंदा पानी पीने के लिए मजबूर है और यह संख्या इथोपिया में गंदा पानी पीने वाली आबादी का लगभग ढाई गुना है।

सीएजी की रिपोर्ट पर गौर करें तो सवाल उठता है कि आखिर 81,168 करोड़ रुपये खर्च करने के बावजूद एक बड़ी आबादी स्वच्छ पेयजल से वंचित कैसे रह गयी। दरअसल, केंद्र सरकार ने लोकसभा में बताया था कि 2017 तक 50 फीसदी ग्रामीण लोगों तक पाइप के जरिए साफ पानी पहुंचाया गया और 2022 तक 90 फीसदी घरों तक पाइप के जरिए पानी पहुंचा दिया जाएगा। लेकिन, सीएजी की रिपोर्ट में कहा गया है कि दिसंबर 2017 तक सिर्फ 44 फीसदी ग्रामीणों को साफ पानी पहुंचाया गया। इसके अलावा 85 फीसदी सरकारी स्कूल और आंगनबाड़ी में पानी की खपत पूरी की गयी। इसमें भी पाइप के जरिए 18 फीसदी जनता को साफ पानी पहुंचाया गया।

रिपोर्ट में योजना को गलत तरीके से लागू करने और खराब मैनेजमेंट को जिम्मेदार ठहराया गया है। इसमें मुख्य रूप से बेकार मदों में पैसे की बर्बादी, खराब बुनियादी ढांचा और कॉन्ट्रैक्ट मैनेजमेंट में गैप को चिन्हित किया गया है। बेकार में हुए पैसे की बर्बादी का आंकड़ा तकरीबन 2,212.44 करोड़ बताया गया है।

 

इंडिया स्पेंड को दिए एक इंटरव्यू में पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय के सचिव परमेश्वरन अय्यर ने योजना को सही ढंग से लागू करने की दिशा में नई कार्यशैली के बारे में बताया। उन्होंने बताया कि NRDWP में कुछ रिफॉर्म किए गए हैं। जिसमें योजना को सही और मज़बूत तरीके से लागू किया जाएगा। इसमें प्राइवेट सेक्टर का भी सहयोग मुमकिन तौर पर लिया जाएगा। नंवबर 2017 के एक प्रेस-रिलीज के हवाले से उन्होंने बताया कि 2020 तक पेयजल योजना को लागू करने के लिए 23,050 करोड़ रुपये का बंदोबस्त किया जा चुका है। हालांकि, जानकार मानते हैं कि योजना को लागू करने की नई तरकीब भी कोई खास बदलाव नहीं ला पाएगी।

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