केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) के निदेशक आलोक वर्मा के पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी और वकील प्रशांत भूषण से मिलने पर नरेंद्र मोदी की सरकार नाखुश बताई जा रही है। सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने इस बारे बताया, “एजेंसी प्रमुख का नेताओं से मिलना ‘असामान्य’ बात है।” दोनों पिछले हफ्ते गुरुवार (चार अक्टूबर) को सीबीआई निदेशक से मिले थे। उन्होंने तब वर्मा को कुछ दस्तावेज सौंपे थे और राफेल सौदे के साथ ऑफसेट करार में कथित तौर पर भ्रष्टाचार को लेकर हुए जांच कराने की मांग उठाई।
अधिकारी के मुताबिक, “यह शायद पहला मौका था, जब नेताओं ने सीबीआई निदेशक से उनके दफ्तर में मुलाकात की। ऐसी मुलाकातें असामन्य हैं।” तीनों की भेंट से संकेत मिलता है कि केंद्र में आसीन मोदी सरकार को यह मुलाकात कतई अच्छी नहीं लगी। आगे उसी वरिष्ठ अधिकारी ने अपनी बात पर बल देते हुए कहा, “सामान्य हालात जब भी कोई नेता सीबीआई निदेशक से मिलने के लिए वक्त मांगते हैं, तब उन्हें एजेंसी मुख्यालय के स्वागत कक्ष (रिेसेप्शन) में शिकायतें या अन्य दस्तावेज सौंपने की सलाह दी जाती है।
बकौल अधिकारी, “कुछ सरकारी अधिकारी ‘उपद्रवी” हो गए हैं। वे आपस में तीखी तकरार कर रहे हैं। अगर इस तरह की लड़ाई जारी रहती है तो संबंधित संगठनों को नुकसान होगा।” बता दें कि मौजूदा सीबीआई निदेशक का कार्यकाल जनवरी 2019 तक है। वह एजेंसी के विशेष निदेशक राकेश अस्थाना के साथ विवाद में उलझे हैं। दोनों पक्ष सार्वजनिक रूप से एक-दूसरे के खिलाफ आरोप लगा रहे हैं। संगठन के 77 सालों के इतिहास में ऐसा पहले कभी नहीं सुना गया।
शौरी, मोदी सरकार के मुखर आलोचक रहे हैं, जबकि भूषण आम आदमी पार्टी (आप) के पूर्व नेता हैं। मुलाकात में उन दोनों ने सीबीआई निदेशक से कहा कि कानून के अनुसार जांच शुरू करने के लिए सरकार की अनुमति ले। दोनों का आरोप है कि राफेल विमान के लिए ऑफसेट करार वास्तव में भारतीय कारोबारी अनिल अंबानी की अगुवाई वाले रिलायंस समूह की एक कंपनी के लिए कमीशन था।
राफेल की निर्माता फ्रांसीसी कंपनी दसाल्ट एविएशन ने करार के ऑफसेट दायित्वों को पूरा करने के लिए रिलायंस डिफेंस को साथी चुना है। भ्रष्टाचार के आरोपों को खारिज करते हुए सरकार का कहना है कि दसाल्ट द्वारा ऑफसेट सहयोगी के चयन में उसकी कोई भूमिका नहीं है। (भाषा इनपुट के साथ)
Be the first to comment