एच 1बी वीजा : कंपनियों ने कहा- प्रशासन को नियमों में बदलाव का अधिकार नहीं है , ट्रंप पर ठोका मुकदमा

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने उच्च कौशल प्राप्त विदेशी पेशेवरों के लिए जारी होने वाले एच-1बी वीजा पर कई तरह की बंदिशें लगा दी हैं। इसके खिलाफ ऑउट सोर्सिंग कंपनियों के समूह ने ट्रंप प्रशासन पर मुकदमा दर्ज कराया है। समूह ने कहा कि प्रशासन का फैसला पूर्णत: गैरकानूनी है।
अमेरिकी नागरिकता और आव्रजन विभाग की ओर से फरवरी में नियमों में किए बदलाव के मुताबिक अब एच-1बी वीजा के लिए कंपनियों कड़ी प्रक्रिया से गुजरना होगा। उन्हें यह प्रमाणित करना होगा कि एच1-बी वीजा पर रखा गया कर्मचारी उच्च कौशल प्राप्त कामगार है और उसका काम वीजा आवेदन के अनुकूल ही होगा।
दो कंपनियों और उनके आउट सोर्सिंग कंपनियों के संघ ने मुकदमें में दावा किया है कि अमेरिकी नागरिकता और आव्रजन विभाग को नियमों में बदलाव का अधिकार नहीं है। यह अमेरिकी प्रशासनिक प्रक्रिया कानून का उल्लंघन हैं। वादियों ने दावा किया है कि ट्रंप प्रशासन के इस फैसले से उनका काम करना मुश्किल हो गया है,क्योंकि प्रशासन नए एच-1बी वीजा आवेदन को न तो स्वीकार कर रहा है और न ही मौजूदा कर्मियों के वीजा में विस्तार दिया जा रहा है।
कांग्रेस के समक्ष भी लॉबी कर रही इन कंपनियों ने कहा, कांग्रेस की नीति रही है कि विदेशी पेशेवरों तक पहुंच बढ़ाई जाए, न कि कंपनियों पर बोझ बढ़ाया जाए। लेकिन ट्रंप प्रशासन के नियम इस सिद्धांत के विपरीत है। फैसले की वजह से उसे योग्य कामगार नहीं मिल रहे हैं। इस बीच मुकदमे पर अमेरिकी नागरिकता और आव्रजन विभाग ने कोई टिप्पणी नहीं की है।
छोटे और मध्यम उद्यमों के समूह, एनएएम और डेरेक्स टेक्नोलॉजी ने यह मुकदमा दर्ज किया है। हालांकि, संघ ने उन कंपनियों की जानकारी नहीं दी है, जो मुकदमे में पक्षकार हैं। हालांकि, इन सभी कंपनियों की एच-1बी वीजा में बहुत कम हिस्सेदारी है। डेरेक्स के भारत में भी कार्यालय है।
ट्रंप प्रशासन की ओर से फरवरी में एच1बी वीजा नियमों में की गई सख्ती से तकनीक सहित तमाम कंपनियां परेशान हैं। एक ओर जहां अमेरिकी कंपनियों को योग्य पेशेवर नहीं मिल रहे हैं। वहीं भारतीय आईटी कंपनियां को भी इन कंपनियों को आईटी सपोर्ट देने में दिक्कत आ रही है।
– 4000 डॉलर की वृद्धि पिछले साल अमेरिका ने वीजा शुल्क में की जिससे कंपनियों का खर्च बढ़ा
– 1.30 लाख डॉलर न्यूनतम वेतन की अर्हता से भी मुश्किल, अभी 60 से 90 हजार डॉलर है वेतन
– अमेरिकी कर्मियों की नियुक्ति को प्रोत्साहन देने से भारतीय कंपनियों को आउटसोर्सिंग में आ सकती कमी
– अमेरिकी पेशेवर का रखना भारतीय पेशेवरों के मुकाबले अधिक खर्चीला साबित होगा
– निर्धारित कार्य के लिए भारतीयों की तरह योग्य कामगारों की अमेरिका में कमी है
– कंपनियों की शोध ईकाई में कार्य कर रहे विदेशी वैज्ञानिकों को रातो रात बदलना असंभव
एच1बी वीजाधारकों के सबसे बड़े नियोक्ताकंपनी कर्मी हिस्सेदारी (% में)
डेलॉयट कंसलटिंग 1,22,384 10.1
कॉग्निजेंट 97,509 8.0
कैपजेमिनी 43864 3.6
प्राइसवाटरहाउसकूपर 33311 2.7
विप्रो 32251 2.7
डेलॉयट एंड टच 29311 2.4
इंफोसिस 25096 2.1
टीसीएस 17116 1.4
– 81 फीसदी इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग के पूर्णकालिक स्नातक छात्र विदेशी हैं
– 79 फीसदी कंप्यूटर साइंस के पूर्ण कालिक स्नातक छात्र भी अमेरिकी नहीं
– 50 फीसदी एक अरब डॉलर से अधिक की स्टार्टअप कंपनियां विदेशी नागरिकों ने स्थापित की
– 70 फीसदी एक अरब डॉलर स्टार्टअप कंपनियों के प्रबंधन व उत्पाद विकास में विदेशी कामगार
– 2016 की रिपोर्ट के मुताबिक 14 भारतवंशियों ने एक अरब डॉलर से अधिक की कंपनी स्थापित की
(स्रोत: अमेरिकी नागरिका और आव्रजन विभाग, यूएस नेशनल फांउडेशन ऑफ पॉलिसी)

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