ग्रामीण भारतीय महिलाओं में स्तन कैंसर को लेकर जागरूकता की कमी

उमिया विश्वविद्यालय, स्वीडन का एक शोध बताता है कि भारत में गांव में रहने वाली महिलाओं में स्तन कैंसर की पहचान अक्सर देर से होती है।

शोध में कहा गया कि भारत के ग्रामीण इलाकों में रहने वाली महिलाओं को इलाज से भी पहले यह जानने कि लिए लंबा इंतजार करना पड़ता है कि उन्हें स्तन कैंसर हो गया है। इसका कारण खुद के द्वारा किए जाने वाले परीक्षण की जानकारी न होना है।

ज्यादातर भारतीय महिलाओं को पता ही नहीं होता कि शरीर के इस भाग का परीक्षण खुद किया जा सकता है और इससे बीमारी पकड़ में आने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं जिससे इलाज में सुविधा मिलती है

शोध टीम के एक सदस्य नितिन गंगाने का कहना है, ‘‘ब्रेस्ट कैंसर के सफल इलाज के लिए शुरुआती दौर में इसका पकड़ में आना बहुत सुविधाजनक होता है। इसलिए जरूरी है कि महिलाओं में खुद के द्वारा परीक्षण के प्रति जागरूकता लाई जाए। अशिक्षा, लापरवाही, गरीबी और अंधविश्वास बहुत से कारण हैं जिनकी वजह से महिलाएं सही वक्त में इलाज के लिए पहुंच ही नहीं पाती हैं।’’

गंगाने ने महिलाओं को लेकर दो अध्ययन किए है। दोनों अध्ययन ग्रामीण परिवेश में महाराष्ट्र के वर्धा जिले में किए गए हैं।

पहले अध्ययन में 1000 महिलाओं से बातचीत की गई। इस बातचीत में उनके सामाजिक-आर्थिक पक्ष, ब्रेस्ट कैंसर के बारे में उनके ज्ञान और स्वपरीक्षण के बारे में जानकारी के बारे में पूछा गया। दूसरा अध्ययन इसी जिले की उन महिलाओं पर किया गया जो इस महिलाएं इस बीमारी से ग्रस्त हैं। इसमें 212 पीड़ित महिलाओं से बातचीत की गई।

इस अध्ययन में पाया गया कि बमुश्किल कोई महिला ऐसी मिली जिसे स्तन के स्वपरीक्षण के बारे में पता था। इनमें से हर तीसरी महिला ने स्तन कैंसर के बारे में सुना ही नहीं था। इस अध्ययन की खास बात यह रही कि महिलाओं ने सेशन में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया और ज्यादा से ज्यादा जानने में रुचि दिखाई।

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