तीन लोकसभा सीट पर हुए उप-चुनाव में मिली करारी हार ने भारतीय जनता पार्टी को जोरदार झटका दिया है। ये तीनों सीटें हैं- बीजेपी के गढ़ यूपी के गोरखपुर, फूलपुर और बिहार की अररिया। 2014 के लोकसभा चुनाव में यहां की 80 में से 73 सीटें जीतने वाली बीजेपी के लिए उप-चुनाव के नतीजे खासकर गोरखपुर में मिली हार ने उसे हिला कर रख दिया है। जिसके बाद उसे आत्मनिरीक्षण की जरूरत है।
भाजपा को ये झटका ऐसे वक्त पर लगा है जब उसे उत्तर-पूर्व के तीनों राज्य में हैरान कर देनेवाली जीत मिली है। त्रिपुरा में तो बीजेपी ने नया इतिहास लिखते हुए वामपंथियों के 25 साल पुराने किले को ढहा कर रख दिया। क्षेत्रीय दलों के साथ मिलकर बीजेपी ने नागालैंड और मेघालय में सरकार बनाने में सफल रही। भाजपा की उप-चुनाव में इस हार ने विपक्षियों को नई ऊर्जा भरकर रख दिया है। जिसके बाद वह ये दावा कर रहे हैं कि इस जीत ने 2019 के महागठबंधन की नींव रख दी है।उत्तर प्रदेश के गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा सीट पर हुए उप-चुनाव में मिली जीत के बाद ऐसी उम्मीद है कि समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव को फिर से राष्ट्रीय राजनीति के केन्द्र में ला देगी। अगले साल होने जा रहे आम चुनाव से पहले बीजेपी के खिलाफ लड़ाई में विपक्षी एकजुटता में अखिलेश यादव की अहम भूमिका हो सकती है।
2017 के यूपी चुनाव में सपा की शर्मनाक हार और बीजेपी की बहुमत के बाद अखिलेश लगतार चुप्पी साध रखी थी। ऐसे में बुधवार को दो सीटों पर बहुजन समाज पार्टी की मदद से उप-चुनावों में मिली जीत 2019 के लोकसभा चुनाव का विपक्षी दलों की रणनीति की दिशा में एक बड़ा आधार हो सकती है।बुधवार की देर रात अखिलेश यादव खुद बीएसपी अध्यक्ष मायावती के लखनऊ के मॉल रोड स्थित उनके आवास पर जाकर गोरखपुर और फूलपुर चुनाव में समर्थन देने के लिए धन्यवाद किया। यह क्षण कई मायनों में अहम रखता है। अखिलेश के पिता मुलायम सिंह और मायावती एक दूसरे के बड़े धुर-विरोधी माने जाते हैं। 2012 में अखिलेश ने मुख्यमंत्री के तौर पर मायावती का स्थान लिया था। धरातल पर दोनों पार्टियों के सामाजिक आधार ओबीसी और दलित एक दूसरे के खिलाफ लड़ते रहे हैं। इन दोनों की स्वीकारोक्ति ने एक नया मोड़ ला दिया है।
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