गरीबी की परिभाषा तय नहीं कर पा रही सरकार, 2.5 लाख पर टैक्स वसूली, 8 लाख पर आरक्षण

नई दिल्ली. केंद्र सरकार ने लोकसभा चुनाव से पहले सवर्णों को 10 फीसदी आरक्षण देने का ऐलान किया है। सरकार की ओर से आरक्षण का लाभ उन परिवारों को दिया जाएगा, जो आर्थिक तौर पर पिछड़े हैं। मतलब जिनकी सालाना आय 8 लाख रुपए से कम है। इस विधेयक पर कैबिनेट की मुहर लग गई है। लेकिन अभी संसद की मुहर लगनी बाकी है। हालांकि सरकार की तरफ से आरक्षण के दायरे में आने वालों के लिए गरीबी को जो परिभाषा गढ़ी गई है, वो गले नहीं उतर रही है। इसे लेकर आर्थिक जानकार सवाल उठा रहे हैं। एक अनुमान के मुताबिक 8 लाख आमदनी के दायरे में 95 फीसदी कवर हो जाएंगे। ऐसे में क्या 10 फीसदी आरक्षण कारगर होगा।

आर्थिक जानकारों की मानें तो सरकार ने आरक्षण देने के लिए गरीबी की जो सीमा तय की है, उसमें कई खामियां है। एक तरफ सरकार 2.5 लाख से ज्यादा कमाई करने वालों से टैक्स लेती है, क्योंकि सरकार की नजरों में 2.5 लाख सालाना कमाने वाला अमीर होता है, जबकि दूसरी तरफ 8 लाख रुपए से कम वालों को आर्थिक तौर पर कमजोर बताया जा रहा है और उनके आर्थिक पिछड़ेपन के लिए आरक्षण का लाभ दिया जा रहा है।

अगर सरकार की ही थ्योरी को सच माना जाएं, तो 8 लाख सालाना कमाई के हिसाब से प्रति माह 66 हजार रुपए की इनकम हुई। ऐसे मे 66 हजार रुपए प्रति माह की कमाई वाला गरीब हुआ। एक अनुमान के मुताबिक भारत में नौकरीपेशा करने वालों का एक बड़ा तबका है, जिन्हें 15 हजार रुपए न्यूनतम मजदूरी नहीं मिलती है। यहां तक की दिल्ली सरकार को 15 हजार रुपए न्यूनतम मजदूरी करने के लिए जद्दोजहद करनी पड़ी। ऐसे में 66 हजार रुपए प्रति माह कमाने वाले गरीब कैसे हुआ।

 

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