क्‍लीन गंगा प्रोजेक्‍ट: अब तक सिर्फ एक-चौथाई बजट खर्च कर पाई मोदी सरकार, हालात जस के तस, सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट का काम भी पूरा नहीं

गंगा नदीं को साफ करने के लिए ‘नमामि गंगे’ परियोजना लेट-लतीफी की भेंट चढ़ रही है। 2020 तक गंगा को साफ करने की मोदी सरकार की यह मुहिम ज़मीन पर फिसड्डी साबित होती दिखाई दे रही है। साल 2019 खत्म होने को है और गंगा नदी की हालत जस की तस बनी हुई है। गौर करने वाली बात यह है कि इस परियोजना के लिए आवंटित बजट में से अभी तक सिर्फ एक चौथाई हिस्सा ही खर्च हो पाया है। केंद्र सरकार ने 2015 में 20,000 करोड़ रुपये का बजट गंगा की सफाई के लिए पारित किए थे। लेकिन, इसमें से सिर्फ 4,800 करोड़ रुपये ही खर्च हो पाए। इस बात का खुलासा 14 दिसंबर, 2018 को लोकसभा में पेश एक डाटा के जरिए हुआ है।

वहीं, ‘इंडियास्पेंड’ की एक पड़ताल में पाया गया कि गंगा की सफाई में जो पैसे अभी तक खर्च हुए हैं, वह सिर्फ सीवेज-ट्रीटमेंट इंफ्रास्ट्रक्चर को तैयार करने में हुए हैं। अभी तक नमामि गंगे प्रॉजेक्ट में खर्च किए गए कुल रकम (4,800 करोड़) में से 3,700 करोड़ रुपये (अक्टूबर,2018 तक) सिर्फ सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट तैयार करने में लगाए गए हैं। यह हिस्सा कुल खर्च हुए बजट का 77 फीसदी है। दरअसल, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल के अधिकांश शहरों की गंदगी गंगा नदी में ही गिरती है। गौर करने वाली बात यह है कि अभी तक सीवेज-ट्रीटमेंट प्लांट बनाने का टारगेट भी पूरा नहीं हो पाया है। इस क्षेत्र में निर्माण की बात करें तो अभी सिर्फ 11 फीसदी ही काम हो पाया है।

गंगा मैली ही रही: भारत की सबसे बड़ी नदी गंगा की सफाई के लिए प्रयास 1986 से ही शुरू किया गया। 2014 तक इसकी सफाई पर 4,000 करोड़ खर्च कर दिए गए। लेकिन, गंगा की हालत खराब होती ही रही। 2015 में एनडीए की मोदी सरकार ने बड़े स्तर पर गंगा-सफाई का कैंपेन चालू किया। उसी दौरान 20,000 करोड़ का भारी भरकम बजट तैयार किया गया। जोर-शोर से काम करने की बात भी चली। लेकिन, लेट-लतीफी को आड़े आते देख इसकी डेडलाइन बढ़ाकर 2020 कर दिया गया।

कई रिसर्च में यह बात सामने आ चुकी है कि गंगा का पानी नहाने के लायक नहीं है। अक्टूबर, 2018 में ‘द वायर’ ने एक रिपोर्ट छापी। जिसमें बताया गया था कि नदी में प्रदूषण का स्तर 80 है। वहीं, पानी में बायोकेमिकल्स ऑक्सिजन डिमांड (बीओडी) का लेवल चिंताजनक है। बीओडी पानी में ऑक्सिजन की मात्रा को निर्धारित करने का मानक है। रिसर्च में पाया गया है कि गंगा में प्रदूषण इस हद तक है कि पानी के भीतर ऑक्सिजन की मात्रा काफी कम हो चुकी है।

गंगा का पानी साफ नहीं होने के पीछे सबसे बड़ी चुनौती इसमें गिरने वाले शहरों गंदे नाले हैं। बिना शोधन के इनकी गंदगी सीधे नदी में गिरती है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक रोजाना 2,900 मिलियन लीटर नाली का गंदा पानी गंगा में गिरता है। जिसका सिर्फ 48 फीसदी हिस्सा ही शोधित किया जाता है।

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