राजस्थान में एससी प्रत्याशियों के लिए आरक्षित 36 सीटों में बीजेपी को 11 पर जीत मिली। 2013 के चुनाव में पार्टी को 32 सीटों पर जीत मिली थी।
आठ महीने पहले राजसथान में एससी-एसटी संगठनों के द्वारा भारत बंद के आयोजन के दौरान हिंसक प्रदर्शन हुए थे। राजस्थान में बीजेपी से सत्ता छिनने के बाद पार्टी को मिले वोटों का आकलन यह बता रहा है कि पार्टी को अनुसूचित जाति और जनजाति समुदाय के लोगों का गुस्सा भारी पड़ा। एससी-एसटी समुदाय के लिए आरक्षित 59 सीटों में से बीजेपी को इन चुनावों में महज 20 सीटों पर जीत मिली है। पिछले लोकसभा चुनाव में पार्टी को 50 सीटों पर जीत मिली थी।
राजस्थान में एससी प्रत्याशियों के लिए आरक्षित 36 सीटों में बीजेपी को 11 पर जीत मिली। 2013 के चुनाव में पार्टी को 32 सीटों पर जीत मिली थी। वहीं, अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित 25 सीटों में से बीजेपी को इस बार 9 पर जीत मिली है। 2013 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 18 पर जीत मिली है। पार्टी का यह खराब प्रदर्शन खास तौर पर उन इलाकों में देखने को मिला जहां इस साल 2 अप्रैल को बंद के दौरान हिंसा हुई थी। एससी-एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विरोध में इस बंद का आयोजन किया गया था।
बीजेपी को पूर्वी राजस्थान में एससी आरक्षित हिंदौन सीट पर 26,780 वोटों से शिकस्त मिली। 3 अप्रैल को यहां कथित तौर पर ऊंची जाति के लोगों की भीड़ ने वर्तमान विधायक और एक पूर्व विधायक का घर जला डाला था। दोनों ही नेता दलित समुदाय से ताल्लुक रखते थे। स्थानीय दलितों ने शिकायत की थी कि यह हिंसा 2 अप्रैल को दलित संगठनों की ओर से किए गए प्रदर्शन के बदले में की गई। इस सीट पर कांग्रेस के भरोसी लाल जाटव को जीत मिली है। वह उन दो नेताओं में से एक हैं जिनके घर को जला दिया गया था।
अब बात अलवर जिले की। यहां 2 अप्रैल को एक दलित की कथित तौर पर पुलिस फायरिंग में मौत हो गई थी। बीजेपी यहां की 10 में से 8 सीटें हार गई है। सीकर जिले में 2 अप्रैल के प्रदर्शनों के बाद बहुत सारे लोगों पर केस दर्ज किए गए थे। पार्टी यहां वो सभी 5 सीट हार गई जो उसने 2013 में जीती थी। कांग्रेस ने जिले की 7 में से 5 सीटें जीत ली हैं। ऐसे ही हालात बाड़मेर और जैसलमेर जिलों में देखने को मिले। यहां 2 अप्रैल को दलित संगठनों और आरक्षण विरोधी संगठनों के बीच संघर्ष हुआ था। इन दो जिलों में 9 सीटों में से सिर्फ 1 पर बीजेपी को जीत मिली।
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