किसानों का आंदोलन (किसान क्रांति यात्रा) भले ही खत्म हो गया हो और वो अपने-अपने घरों को वापस लौट गए हों मगर दो अक्टूबर को दिल्ली-यूपी बॉर्डर पर जो कुछ भी हुआ, उससे भाजपा की परेशानी बढ़ गई है। आंदोलन करने दिल्ली पहुंचे अधिकांश किसान पश्चिमी उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों से आए थे। इनमें से अधिकांश जाट थे जिनका झुकाव साल 2014 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की तरफ था लेकिन यूपी की भाजपा सरकार और केंद्र की भाजपा सरकार ने जिस तरह से उनके साथ व्यवहार किया उससे वो नाराज बताए जा रहे हैं। ऐसी आशंका जताई जा रही है कि ये किसान 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा से किनारा कर सकते हैं।
अगर ऐसा हुआ तो भाजपा को इसका सबसे ज्यादा खामियाजा भुगतना पड़ेगा क्योंकि पश्चिमी यूपी से करीब दो दर्जन लोकसभा सांसद चुनकर आते हैं। इस वक्त उन सभी सीटों पर भाजपा का कब्जा है। बता दें कि जाटों का पारंपरिक तौर पर झुकाव अजित सिंह के राष्ट्रीय लोक दल से रहा है लेकिन 2014 में जाटों ने बढ़-चढ़कर भाजपा को वोट किया था। राज्य में नए सियासी समीकरण और नए गठबंधन के बाद हुए उप चुनाव ने भी साफ कर दिया है कि अब जाट समुदाय का भाजपा से मोहभंग हो चुका है और वो महागठबंधन के साथ हैं। बता दें कि कैराना उप चुनाव में महागठबंधन की उम्मीदवार रालोद की तबस्सुम हसन की जीत हुई थी। इस चुनाव में जाट समुदाय ने भाजपा को छोड़कर महागठबंधन को वोट दिया था। 2014 में इसी सीट पर भाजपा उम्मीदवार हुकुम सिंह को 5 लाख 65 हजार वोट मिले ते लेकिन उनके निधन के बाद हुए उप चुनाव में उनकी बेटी मृगंका सिंह को सवा लाख वोट कम कुल 4 लाख 36 हजार वोट ही मिल सके।
जाटों के अलावा इन इलाकों में मुस्लिम समुदाय की भी अच्छी तादाद है। गठबंधन की सूरत में जाट और मुस्लिम समुदाय भाजपा से दूर रह सकता है। लिहाजा, ऐसी राजनीतिक स्थिति बनने पर नरेंद्र मोदी सरकार के कुछ मंत्रियों को भी सीट गंवानी पड़ सकती है। सबसे ज्यादा खतरा बागपत से सांसद और मोदी सरकार में मंत्री सत्यपाल सिंह पर मंडरा रहा है। 2014 के चुनावों में उन्हें 4 लाख 23 हजार 475 वोट मिले थे, जबकि सपा के गुलाम मोहम्मद को 2 लाख 13 हजार 609 वोट और रालोद के अजित सिंह को 1 लाख 99 हजार 516 वोट मिले थे। बसपा के प्रशांत चौधरी ने भी 1 लाख 41 हजार 743 वोट हासिल किए थे। यानी गठबंधन की सूरत में भाजपा के खिलाफ जाट वोटों के ध्रुवीकरण के अलावा मुस्लिम, दलित, पिछड़ी जाति के वोटों का बिखराव भी रुक सकता है। ऐसे में सिर्फ 2014 के पैटर्न की ही बात करें तो विपक्षी महागठबंधन को 5 लाख 55 हजार से ज्यादा वोट मिल सकते हैं।
पश्चिमी यूपी के तहत जो संसदीय सीटें आती हैं उनमें बागपत के अलावा कैराना, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, नगीना, मुरादाबाद, रामपुर, बिजनौर, संभल, अमरोहा, मेरठ, गाजियाबाद, गौतम बुद्ध नगर, बुलंदशहर, अलीगढ़, हाथरस, मथुरा, आगरा, फतेहपुर सीकरी आदि शामिल हैं। आंदोलन खत्म होने के बाद भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष नरेश टिकैत ने भी कहा है कि हम जीत गए हैं लेकिन भाजपा सरकार अपने उद्देश्यों में विफल रही है। बता दें कि कर्ज माफी, सिंचाई के लिए मुफ्त बिजली, एमएसपी बढ़ाने समेत 15 सूत्रीय मांगों के समर्थन में किसानों ने 12 दिन पहले हरिद्वार से किसान घाट तक पदयात्रा शुरू की थी लेकिन सरकार ने किसानों को दिल्ली में घुसने से रोक दिया था। यूपी बॉर्डर पर मंगलवार को किसानों और जवानों में भिड़ंत भी हुई थी। हालांकि, बाद में सरकार ने तीन अक्टूबर को अहले सुबह किसानों को दिल्ली स्थित किसान घाट तक जाने की इजाजत दे दी।
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