रात 10 बजे के बाद स्मार्टफोन पर चैटिंग करना, गेम खेलना या फिल्म देखना डिप्रेशन का सबब बन सकता है। ब्रिटेन स्थित ग्लासगो यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने 91 हजार लोगों पर रात में गैजेट के इस्तेमाल के दुष्प्रभाव आंकने के बाद यह चेतावनी जारी की है।
उनके मुताबिक स्मार्टफोन, टैबलेट, कंप्यूटर, लैपटॉप और टीवी स्क्रीन से निकलने वाली कृत्रिम रोशनी शरीर की जैविक घड़ी (बॉडी क्लॉक) को प्रभावित करती है। इससे मस्तिष्क को रात में भी दिन होने का भ्रामक संदेश जाता है। वह व्यक्ति को अलर्ट रखने के लिए स्लीप हार्मोन ‘मेलाटोनिन’ का उत्पादन धीमा कर देता है, जिससे उसे सोने में परेशानी होती है।
शोधकर्ता प्रोफेसर डेनियल स्मिथ ने बताया कि रात में अच्छी नींद न सिर्फ यादें संजोने में मददगार है, बल्कि इससे तर्क-शक्ति, रचनात्मकता और एकाग्रता में भी इजाफा होता है। डिप्रेशन का खतरा दूर कर ‘फील गुड’ करवाने, सुबह तरोताजा रखने और चिड़चिड़ेपन व उदासी-लाचारी के भाव से बचाने में भी इसकी भूमिका बेहद अहम पाई गई है।
अध्ययन के दौरान स्मिथ और उनके साथियों ने ब्रिटेन के 37 बायोबैंक से प्राप्त 91 हजार लोगों के चिकित्सकीय रिकॉर्ड का विस्तृत विश्लेषण किया। उन्होंने पाया कि जो लोग दिन में सुस्त और रात में सक्रिय रहते थे, उनमें अनिद्रा, चिड़चिड़ेपन, अकेलेपन और बेबसी के भाव की शिकायत ज्यादा थी। ये सभी डिप्रेशन के लक्षण माने जाते हैं। अध्ययन के नतीजे ‘द लैंसेट साइकैटरी जर्नल’ के हालिया अंक में प्रकाशित किए गए हैं
-स्मार्टफोन से निकलने वाली कृत्रिम रोशनी बॉडी क्लॉक को प्रभावित करती है
-स्लीप हार्मोन ‘मेलाटोनिन’ का उत्पादन धीमा पड़ने से सोने में दिक्कत होती है
-मन में उदासी-लाचारी का भाव पनपने से व्यक्ति डिप्रेशन की जद में आ जाता है
-बॉडी क्लॉक न सिर्फ शरीर का तापमान, बल्कि खानपान और सोने की आदतें भी नियंत्रित करती है
-यह मोटापे का खतरा घटाने के साथ ही रक्तचाप-कोलेस्ट्रॉल का स्तर काबू में रखने के लिए अहम है
-विभिन्न शोध में बॉडी क्लॉक बिगड़ने को कैंसर-हृदयरोग का खतरा बढ़ाने के लिए जिम्मेदार पाया गया है
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