अनूठी है केदारनाथ मंदिर के कपाट खुलने की परंपरा

कहते हैं भगवान शंकर के असंख्य नाम है, ग्यारहवें ज्योर्तिलिंग भगवान केदारनाथ भी इन्हीं में एक शामिल है। केदारनाथ धाम के कपाट खुलने और बंद होने में उत्सव डोली यात्रा का विशेष महत्व है। माना जाता है कि वह भाग्यशाली लोग होते हैं जो 3 दिन की इस पैदल यात्रा में शामिल होते हैं। अद्भुत, अलौकिक और फलदायी भगवान आशुतोष की डोली यात्रा इस बार भी 26 अप्रैल से शुरू होगी। द्वादश ज्योर्तिलिंगों में ग्यारहवें ज्योर्तिलिंग के रूप में भगवान शिव हिमालय स्थित केदारनाथ धाम में विराजमान है। वर्तमान में 1008 भीमा शंकर लिंग केदारनाथ के 336वें रावल हैं। अनादिकाल से कपाट खुलने के मौके पर भगवान शिव की डोली पंचकेदार गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ से केदारनाथ धाम ले जाई जाती है जबकि कपाट बंद होने पर यही डोली दोबारा ऊखीमठ लाई जाती है। केदारनाथ के पुराने पुजारी जो अब पूरी तरह वृद्ध हो चुके हैं, 95 वर्षीय निरंजनलिंग बताते हैं कि केदारनाथ भगवान की 2 मूर्तियां है। एक भोग मूर्ति है जिसे केदरनाथ में पुजारी निवास में रखा जाता है और यहीं इसकी पूजा होती है और दूसरी भगवान केदारनाथ की पंचमुखी उत्सव मूर्ति है। इसमें भगवान शिव के सत्योजात, वामदेव, अघोर, ततपुरुष और ईशान रूपी मुख हैं। इस मूर्ति के पीछे वाले भाग में शेषनाग बना है जबकि सिर पर स्वर्णमुकुट लगाया जाता है।कहा जाता है कि सदियों पूर्व भगवान केदारनाथ की डोली यात्रा में महज भोग मूर्ति और नागरूपी ताले को कंडी में रखकर केदारनाथ ले जाया जाता था किंतु कुछ समय बाद भगवान की पंचमुखी उत्सव मूर्ति को भी डोली यात्रा में ले जाने की परम्परा बनी। हालांकि इसके समय को लेकर पुराने पुजारी भी सही जानकारी नहीं दे सके। ऊखीमठ से शुरू होने वाली 3 दिनों की पैदल उत्सव डोली यात्रा जब केदारनाथ पहुंचती है तो उत्सव मूर्ति को भंडार गृह में रखा जाता है और 6 महीने कपाट बंद होने पर दोबारा इसे ऊखीमठ लाकर भंडार गृह में रख दिया जाता है। इधर पुजारी शिव शंकर लिंग बताते हैं कि भोगमूर्ति की 12 महीनों पूजा की जाती है। 6 महीने केदारनाथ में केदारनाथ पुजारी और 6 महीने ऊखीमठ में ऊखीमठ के पुजारी भगवान शिव की भोग मृर्ति की पूजा करते हैं।भगवान केदारनाथ जिन्हें बाबा केदार के रूप में भी जाना जाता है, की डोली यात्रा से पहले ऊखीमठ में भगवान भैरवनाथ की विशेष पूजा होती है। परम्परा के जानकार बताते हैं कि यहां केदारनाथ रावल, संस्कृत के अष्टादश छात्रों द्वारा पूजा की जाती है। भैरवनाथ को पूरी और पकोड़ी की मालाएं पहनाई जाती है। भगवान का श्रृंगार कर पूजा संपन्न कराई जाती है। विश्व प्रसिद्ध केदारनाथ धाम के कपाट आगामी 29 अप्रैल को सुबह 6 बजकर 15 मिनट पर खोले जाएंगे। जबकि 26 अप्रैल को ऊखीमठ से डोली यात्रा शुरू होगी। पहले दिन डोली फाटा, 27 अप्रैल को गौरीकुंड और 28 अप्रैल को डोली केदारनाथ धाम पहुंचेगी।

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