डॉलर के मुकाबले रुपया क्यों नहीं संभल पा रहा है

इस साल डॉलर के मुकाबले रुपये में 3.4 पर्सेंट की गिरावट आ चुकी है, जबकि पिछले साल यह 6.8 पर्सेंट चढ़ा था। पहली नजर में देखने पर तो मन में यह सवाल उठ सकता है कि अचानक ऐसा क्यों हो रहा है, लेकिन जो लोग पिछले तीन दशकों में रुपये की चाल पर नजर रख रहे हैं, वे इसे 2019 में होनेवाले लोकसभा चुनाव से जोड़कर देख रहे होंगे।

अक्सर लोकसभा चुनाव से एक साल पहले डॉलर के मुकाबले रुपये में कमजोरी आती है। 1984 के बाद देश में नौ बार लोकसभा चुनाव हुए हैं, जिनमें 8 बार चुनाव से सालभर पहले रुपये में कमजोरी आई है। पांच बार तो डॉलर के मुकाबले भारतीय करंसी में गिरावट 10% से ज्यादा रही है। सिर्फ 2004 में लोकसभा चुनाव से पहले डॉलर के मुकाबले रुपये में 6.4 पर्सेंट की मजबूती आई थी।

हालांकि, एसपी जैन इंस्टिट्यूट ऑफ मैनेजमेंट रिसर्च में असोसिएट प्रफेसर और फॉर्मर बैंकर अनंत नारायण ने बताया कि करंट अकाउंट डेफिसिट (सीएडी) में बढ़ोतरी, देश में कम विदेशी निवेश होने, अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड ऑइल के दाम में तेजी आने के चलते अभी रुपये में कमजोरी आ रही है। उन्होंने कहा कि मौजूदा गिरावट की वजह कमजोर फंडामेंटल्स हैं।

कुछ जानकार चुनाव से पहले रुपये के मूवमेंट को संदेह की नजरों से देख रहे हैं। उनका कहना है कि संभवत: चुनाव के लिए विदेश में छिपाकर रखा गया पैसा देश में लाने से रुपये में यह हलचल हुई। हालांकि, कुछ एक्सपर्ट्स ऐसा नहीं मानते। इंडिया रेटिंग्स के चीफ इकॉनमिस्ट और सीनियर डायरेक्टर डी के पंत ने बताया कि इस बात को सही साबित करने के लिए पर्याप्त आधिकारिक डेटा नहीं हैं।

पंत ने बताया कि करंसी एक्सचेंज रेट पर कैपिटल फ्लो के नेचर जैसी कई चीजों का असर होता है। महंगाई बढ़ने पर भी करंसी में कमजोरी आती है। आनेवाले महीनों में रुपये के कमजोर रहने की आशंका दिख रही है। क्रूड के दाम में उतार-चढ़ाव, ट्रेड डेफिसिट में बढ़ोतरी और अगले एक साल में होनेवाले चुनावों की वजह से इस पर दबाव बना रह सकता है। नारायण का कहना है कि 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले आने वाली कुछ तिमाहियों में रुपये में 5 पर्सेंट की कमजोरी आ सकती है। उन्होंने कहा कि अभी रिजर्व बैंक के पास बड़ा विदेशी मुद्रा भंडार है। इससे रुपये में गिरावट को रोकने में मदद मिलेगी।

 

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