केंद्र सरकार ने दवा कंपनियों और इंपोर्टर्स की मनमानी पर लगाम लगाने का फैसला कर लिया है। कोई भी दवा कंपनी एक साल में दवा या इक्यूपमेंट की कीमतों में 10 फीसदी से ज्यादा की बढ़ोतरी नहीं कर सकेगी। अगर कंपनियां इस आदेश को नहीं मानतीं तो उनका लाइसेंस रद्द होगा और उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई भी की जाएगी। नेशनल फार्मास्यूटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी (एनपीपीए) ने यह आदेश जारी किया है। यह आदेश एनपीपीए ने अपनी उस रिपोर्ट के बाद जारी किया, जिसमें खुलासा हुआ था कि प्राइवेट हॉस्पिटल अपने यहां दवा के डिब्बों पर ज्यादा एमआरपी लिखवाते हैं और भारी मुनाफा कमाते हैं।
– एनपीपीए के पिछले हफ्ते जारी आदेश में कहा गया है कि है कि अगर दवा कंपनियां मेक्सिमम रिटेल प्राइज (एमआरपी) से 10 फीसदी ज्यादा कीमत एक साल में बढ़ा देती हैं तो उनसे ब्याज समेत बढ़ी हुई कीमत वसूली जाएगी। यही नहीं कंपनियों से जुर्माना भी वसूल किया जाएगा। बढ़ी कीमत का ब्याज तब से लिया जाएगा जबसे कंपनियों ने गलत तरीके से एमआरपी बढ़ाई होगी।एनपीपीए ने कहा है कि फैसला सभी तरह की दवाओं पर लागू होगा फिर चाहे वह शेड्यूल ड्रग्स (कीमत पर सरकारी कंट्रोल) की लिस्ट में हो या नॉन शेड्यूल ड्रग्स (कीमत पर सरकारी कंट्रोल से बाहर) की लिस्ट में हो।
– एनपीपीए के आदेश को लागू कराने और निगरानी का काम सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन (सीडीएससीओ) को कराना है।
– एनपीपीए ने इस बारे में सीडीएससीओ से कहा है कि दवा और इक्यूपमेंट कंपनियां जो इस नियम का पालन नहीं करती है, उसका लाइसेंस रद्द करें। यही नहीं एसेंशियल कमोडिटी एक्ट के तहत कानूनी कार्रवाई करने के लिए भी एनपीपीए ने सीडीएससीओ को कहा है।
– देश में सीडीएससीओ दवा कंपनियों को दवा बनाने, बेचने और इंपोर्ट करने का लाइसेंस देती है। 9 पूर्व आईएमए प्रेसिडेंट डॉ. केके अग्रवाल के मुताबिक, स्टॉकिस्ट को दवाएं मैन्यूफैक्चरिंग कॉस्ट से पांच फीसदी ज्यादा और केमिस्ट को 16 फीसदी तक ज्यादा दाम पर मिलती हैं।
– अगर किसी दवा को बनाने में पांच रुपए का खर्च आता है तो उसे स्टॉकिस्ट को 5.40 रुपए में बेचा जाएगा और केमिस्ट को 5.80 रुपए में बेचा जाएगा। यानी रिटेलर जिस कीमत पर दवा को बेच रहा है उससे महज 16 फीसदी कम मैन्यूफैक्चिरिंग कॉस्ट होनी चाहिए।
– नॉन शेड्यूल्ड दवाओं में यह प्रतिशत स्टॉकिस्ट के पास 10 और रीटेलर के पास 20 फीसदी का होना चाहिए।एनपीपीए की रिपोर्ट के मुताबिक, बड़े-बड़े अस्पताल दवा बनाने वाली कंपनियों से सीधे संपर्क करते हैं और दवा की डिमांड रखते हैं।
– दवा बनाने वाली कंपनियां अस्पताल की मांग के मुताबिक, मनमानी कीमतें लिख देती हैं और उस एमआरपी की दवा उसी हॉस्पिटल में भेजी जाती है, जबकि वही दवा दूसरी जगह अलग एमआरपी पर बेची जाती है।कोई शिकायत करता है कि दवा की कीमत ज्यादा वसूली जा रही है या ड्रग्स कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन जांच में पाता है कि पिछले साल की तुलना में इस साल एमआरपी कई गुना बढ़ा दी गई है, तब उस कंपनी पर कार्रवाई की जाएगी। अधिक एमआरपी की शिकायत एनपीपीए, ड्रग्स कंट्रोलर या उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय से की जा सकती है।
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