मोदी सरकार ने 1-5 रुपए बढ़ाई मनरेगा मजदूरी, पहली बार इतनी कम बढ़ोतरी

साल 2019-20 के लिए केन्द्र सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय ने मनरेगा के तहत मजदूरी में सिर्फ 2.16 प्रतिशत की सालाना बढ़ोत्तरी की है। बता दें कि यह बढ़ोत्तरी मनरेगा में की गई अभी तक की सबसे कम बढ़ोत्तरी है। इस तरह 1 अप्रैल से देश के 6 राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में मनरेगा (महात्मा गांधी नेशनल रुरल एम्पोयमेंट गारंटी एक्ट) के तहत मिलने वाली मजदूरी में कोई बढ़ोत्तरी नहीं होगी। वहीं अन्य 15 राज्यों में यह बढ़ोत्तरी सिर्फ 1 से 5 रुपए होगी। जिन राज्यों में मनरेगा के तहत मिलने वाली मजदूरी में कोई बढ़ोत्तरी नहीं होगी, उनमें कर्नाटक, केरल, पश्चिम बंगाल शामिल हैं। वहीं जिन राज्यों में मनरेगा मजदूरी में 1 रुपए की बढ़ोत्तरी की गई है, उनमें हिमाचल प्रदेश और पंजाब शामिल हैं। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में सिर्फ 2 रुपए की बढ़ोत्तरी हुई है।

गौरतलब है कि मनरेगा (Mahatma Gandhi National Rural Employment Guarantee Act) योजना की शुरुआत साल 2006 में की गई थी। इस योजना के तहत देश के ग्रामीण इलाकों में जरुरतमंद लोगों को 100 दिन का रोजगार दिया जाता है। इस योजना के तहत लोगों को दी जाने वाली मजदूरी का निर्धारण केन्द्र सरकार द्वारा किया जाता है। बाढ़ या सूखे के हालात में मनरेगा की सीमा 100 से बढ़ाकर 150 दिन भी की जा सकती है। यूपीए के शासनकाल में लॉन्च की गई इस स्कीम में मिलने वाली औसत मजदूरी में बीते कुछ सालों में गिरावट आयी है। साल 2018-19 में मनरेगा में सिर्फ 2.9 प्रतिशत और उसके पहले के दो सालों में यह बढ़ोत्तरी क्रमशः सिर्फ 2.7 और 5.7 प्रतिशत रही। बिहार और झारखंड में सबसे कम मनरेगा मजदूरी दी जाती है, जो कि 171 रुपए प्रतिदिन है। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ में यह 176 रुपए प्रतिदिन और हरियाणा और केरल जैसे राज्यों में यह सबसे ज्यादा क्रमशः 284 रुपए प्रतिदिन और 271 रुपए प्रतिदिन मिलती है।

द इंडियन एक्सप्रेस की एक खबर के अनुसार, इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलेपमेंट रिसर्च के निदेशक महेंद्र देव के नेतृत्व में बने एक पैनल ने बीते दिनों वित्त मंत्रालय को एक रिपोर्ट सौंपी थी। इस रिपोर्ट में पैनल ने सरकार से मनरेगा के तहत मिलने वाली मजदूरी को राज्यों द्वारा दी जाने वाली न्यूनतम कृषि मजदूरी के बराबर करने और इसे कंज्यूमर प्रोटेक्शन प्राइस (ग्रामीण) में शामिल किए जाने की मांग की थी। बता दें कि अभी यह साल 1983 में बने उपभोक्ता पैटर्न के अनुसार बना हुआ है। लेकिन ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा महेंद्र देव पैनल की इस रिपोर्ट को नकार दिया और अतिरिक्त सचिव नागेश सिंह के नेतृत्व में एक अन्य कमेटी का गठन किया गया। इस कमेटी ने इसे 1983 के पैटर्न पर ही तय करने का सुझाव दिया। हालांकि वित्त मंत्रालय द्वारा इस रिपोर्ट को भी खारिज कर दिया गया। हाल ही में पश्चिम बंगाल की टीएमसी सरकार ने अपने घोषणा पत्र में ऐलान किया है कि उनकी सरकार राज्य में मनरेगा की सीमा को बढ़ाकर 200 दिन करेगी।

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