Lok Sabha Election 2019: मोदी सरकार सबको मकान देने का सपना पूरा कर पाएगी ?

नरेंद्र मोदी सरकार ने वादा किया था कि साल 2022 तक हर भारतीय को रहने के लिए घर मिल जाएगा. जिसमें इस साल के अंत तक ग्रामीण इलाक़ों में एक करोड़ घर तैयार करने के साथ शहरी इलाक़ों में 2022 तक एक करोड़ घर बनाने की बात शामिल थी.

भारत में आवास की कमी की गंभीर समस्या को देखते हुए ज़्यादा घर बनाने की योजना बनी और स्वीकृत भी हुई लेकिन अब तक इस दिशा में सरकार ने जितने घर बनाने का वादा किया था, उतना काम नहीं हुआ है.

हालांकि बीजेपी की सरकार पूर्ववर्ती कांग्रेस नेतृत्व वाली सरकार की तुलना में कहीं ज़्यादा तेज़ गति से घर बना रही है.

2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बेघरों के लिए आवासीय योजना की शुरुआत की थी. फ़रवरी 2018 में उन्होंने कहा, “2022 तक सबको घर देने का हमारा लक्ष्य पूरा हो जाएगा.”

2011 की जनगणना के आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक़ भारत की 1.2 अरब आबादी में बेघरों की आबादी 17.7 करोड़ है.

हाल-फ़िलहाल के आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन इस क्षेत्र में काम करने वाली संस्थाओं के मुताबिक़ बेघरों की संख्या आधिकारिक संख्या से कहीं ज़्यादा है.

आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक़ भारत की सबसे अधिक आबादी वाले शहर मुंबई में 57,416 लोग बेघर हैं लेकिन एक स्थानीय ग़ैर-सरकारी संस्था के मुताबिक़ वास्तव में चार से पांच गुना ज़्यादा लोग बेघर हैं.

ऐसे में हर किसी को आवास देने के लिए कितने घरों की ज़रूरत होगी, इसका पता लगा पाना बेहद मुश्किल है.

यहां यह भी महत्वपूर्ण है कि मौजूदा योजना या इससे पहले की योजना में केवल उन लोगों को घर देने का वादा शामिल नहीं है जिनके पास घर नहीं है बल्कि जो लोग कामचलाऊ घरों में रहते हैं, उन्हें भी पक्के घर मुहैया कराया जाना है.

मौजूदा योजना में सरकार न्यूनतम आय वाले लोगों को प्रत्येक घर के लिए एक लाख तीस हज़ार रुपये का अनुदान देती है. इसका उद्देश्य इन परिवारों को शौचालय, बिजली और कुकिंग गैस कनेक्शन जैसी आधारभूत सुविधाओं से युक्त मकान देना है.

अब तक कितने मकान तैयार?

जुलाई, 2018 में नरेंद्र मोदी ने कहा कि शहरी क्षेत्रों में बनाए जाने वाले एक करोड़ आवास में 54 लाख आवास को स्वीकृत किया जा चुका है.

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक़, दिसंबर 2018 तक 65 लाख आवासों को स्वीकृत किया जा चुका है. यह ऐसी ही योजना में पिछली सरकार द्वारा 2004 से 2014 में स्वीकृत आवास की संख्या से ज़्यादा है.

लेकिन पिछले दिसंबर तक इनमें से केवल 12 लाख मकान पूरी तरह तैयार करके लोगों को सौंपे गए हैं.

ग़ौरतलब है कि सरकारी फ़ाइलों में एक आवास को स्वीकृति मिलने में एक साल का वक़्त लगता है और उसे तैयार करने और लोगों को देने में कुछ और साल का.

दिसंबर 2018 में क्रेडिट रेटिंग एजेंसी क्रिसिल ने अनुमान लगाया है कि शहरी क्षेत्रों में एक करोड़ आवास का लक्ष्य पूरा करने के लिए सरकार को 2022 तक 1500 अरब रुपया ख़र्च करना होगा.

हालांकि, रिपोर्ट ये भी बताती है कि सरकार ने अब तक अनुमानित लागत का केवल 22 फ़ीसदी पैसा ख़र्च किया है.

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