नवीन पटनायक… वह राजनेता जो पिछले 18 सालों से ओडिशा की सत्ता पर काबिज़ है. पटनायक मार्च 2000 में पहली बार ओडिशा के मुख्यमंत्री बने थे और इसके बाद वह लगातार जीतते चले आ रहे हैं. पटनायक चार बार ओडिशा के मुख्यमंत्री बन चुके हैं. राज्य में लोकसभा चुनाव के साथ ही विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं और फिर एक बार उनकी नजर सीएम की कुर्सी पर है, लेकिन इस बार उनके सामने बीजेपी चुनौती खड़ी करने के लिए तैयार नजर आ रही है.
2014 के विधानसभा चुनाव में पटनायक की पार्टी बीजेडी को 147 में से 117 मिली थी. इसी के साथ बीजेडी ने 43.35% का भारी भरकम वोट शेयर प्राप्त किया था. वहीं बीजेपी को 16 और कांग्रेस को 10 सीटों पर जीत हासिल हुई, जबकि चार सीटें अन्य के खाते में गई. बीजेडी को 2009 में 103 सीटें, 2004 में 61 सीटें और 2000 के विधानसभा चुनाव में 68 सीटें मिली थीं. पार्टी 2000 से 2004 के बीच एनडीए का हिस्सा थी.
लोकसभा चुनाव की बात करें तो 1998 के लोकसभा चुनाव में बीजेडी को 9 सीटें और 27.5% वोट प्राप्त हुए. यह पहला चुनाव था जब बीजेडी ने राजनीतिक दल के रूप में चुनाव लड़ा था. 1999 के चुनाव में इसने 33% वोट के साथ 10 सीटों पर जीत दर्ज की. 2004 के चुनाव में जब पार्टी एनडीए का हिस्सा थी, तब इसे 30% वोट मिले और 10 सीटों पर जीत हासिल हुई.
2009 में पार्टी ने पहली बार अपने दम पर लोकसभा चुनाव लड़ा और 37.2% वोट के साथ 14 सीटों पर जीत दर्ज की. 2014 में पार्टी ने जबरदस्त प्रदर्शन करते हुए 44.8% वोट के साथ राज्य की 21 में से 20 सीटों पर जीत दर्ज की.
पिछले साल सत्ता विरोधी लहर के चलते तीन राज्यों राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में बीजेपी की हार के बाद, आने वाले विधानसभा चुनावों को नवीन पटनायक के लिए महत्वपूर्ण माना जा रहा है. तीन राज्यों में बीजेपी की हार का असर ओडिशा के राजनीतिक हलकों पर पड़ा, जहां पटनायक पिछले 18 सालों से सत्ता में हैं.
एक्सपर्ट ने इससे पहले बताया था कि ओडिशा में धान की बिक्री को लेकर किसानों में गुस्सा है, जबकि सरकार धान की एमएसपी बढ़ाकर 2950 रुपये करने हेतु राज्य विधानसभा में सर्वसम्मति से पारित प्रस्ताव को स्वीकार न करने लिए केंद्र सरकार को दोषी ठहरा रही हैं.
इसके साथ ही कुछ अधूरे वायदे भी हैं. 2000 में जब बीजेडी पहली बार सत्ता में आई तब से उसके हर घोषणा पत्र में राज्य के 314 ब्लॉकों में प्रत्येक में 35 प्रतिशत सिंचाई सुविध प्रदान करने की बात कही जाती है, लेकिन अभी तक मात्र 114 ब्लॉकों में ही ऐसा हो पाया है. शराब को बढ़ावा देने को लेकर महिलाओं में असंतोष है. इसके साथ ही बिक्री संकट से जूझ रहे किसान फ्लैगशिप योजना में शामिल न किए जाने से नाराज हैं.
अगर राज्य के सबसे हालिया चुनावों- 2017 के पंचायत चुनावों के नतीजे देखें तो बीजेपी, बीजेडी के लिए कांग्रेस से बड़ी मुश्किल खड़ी करती दिख रही है. साल 2017 के पंचायत चुनावों में बीजेपी ने जिला परिषद की कुल 851 सीटों में से 297 पर जीत दर्ज की थी, जो साल 2012 में मिली 36 सीटों में बड़ा सुधार है. इस चुनाव में भगवा पार्टी ने कांग्रेस को तीसरे स्थान पर धकेल दिया जो मात्र 60 जिला परिषद सीटों पर जीत दर्ज कर सकी, जबकि 2012 में उसने 128 सीटों पर जीत दर्ज की थी. वहीं दूसरी तरफ बीजेडी ने जिला परिषद की 473 सीटों पर जीत दर्ज की थी, हालांकि 2012 की तुलना में उसकी सीटें कम हुई. 2012 में बीजेडी ने 651 जिला परिषद की सीटें जीती थी.
दिलचस्प बात यह है कि बीजेडी को चुनाव के बाद केंद्र में संभावित किंग मेकर के तौर पर देखा जा रहा है, लकिन पार्टी ने एनडीए अथवा महागठबंधन का हिस्सा बनने से साफ इनकार कर दिया है. इस साल जनवरी में नवीन पटनायक ने कहा, “जहां तक महागठबंधन की बात है तो बीजेडी इसका हिस्सा नहीं है.” इसके साथ ही उन्होंने कहा कि पार्टी बीजेपी और कांग्रेस दोनों से समान दूरी बरकरार रखेगी.
इसके साथ ही पार्टी ने संभावित ‘थर्ड फ्रंट’ का हिस्सा बनने पर भी अपना पक्ष स्पष्ट नहीं किया. पिछले साल दिसंबर में तेलंगाना के मुख्यमंत्री और टीआरएस प्रमुख चंद्रशेखर राव ने नवीन पटनायक से मुलाकात की थी जिसके बाद ‘थर्ड फ्रंट’ की संभावनाओं को बल मिला था.
इसी बीच लोकसभा चुनावों की घोषणा से ठीक पहले नवीन पटनायक ने ऐलान किया कि पार्टी 33% सीटों पर महिलाओं को टिकट देगी. बता दें कि 2014 के चुनाव में बीजेडी ने मात्र 2 महिला उम्मीदवारों को टिकट दिया था और दोनों ही ने जीत प्राप्त की थी.
Be the first to comment