अनिल अंबानी की कंपनियों पर हाई कोर्ट ने की तीखी टिप्पणी- छल की बू आती है

अदालत ने दोनों पक्षों के सुनने के बाद अपनी टिप्पणी में कहा कि रिलायंस ग्रुप का दावा धोखा और गुमराह करने वाला प्रतीत होता है। हालांकि बॉम्बे हाईकोर्ट ने अभी तक इस मामले में अपना फैसला नहीं सुनाया है।

रिलायंस धीरूभाई अंबानी ग्रुप (ADAG) के चेयरमैन अनिल अंबानी की मुश्किलें बढ़ती ही जा रही हैं। एरिक्सन मामले में सुप्रीम कोर्ट से झटका लगने के बाद अब एक अन्य मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट ने रिलायंस ग्रुप पर तीखी टिप्पणी की है। दरअसल रिलायंस ग्रुप ने डिबेंचर के तौर पर Edelweiss Group Companies से कर्ज लिया था। इसके एवज में रिलायंस ग्रुप ने अपने कुछ शेयर Edelweiss Group Companies के पास गिरवी रखे थे। लेकिन जब रिलायंस ग्रुप अपना कर्ज नहीं चुका सका तो Edelweiss Group Companies ने इन गिरवी शेयर की बिक्री कर दी। जिसके खिलाफ रिलायंस ग्रुप मुआवजे की मांग को लेकर अदालत पहुंच गया, लेकिन अदालत ने रिलायंस ग्रुप पर ही सवाल खड़े कर दिए।

अदालत ने दोनों पक्षों के सुनने के बाद अपनी टिप्पणी में कहा कि रिलायंस ग्रुप का दावा धोखा और गुमराह करने वाला प्रतीत होता है। हालांकि बॉम्बे हाईकोर्ट ने अभी तक इस मामले में अपना फैसला नहीं सुनाया है। रिलायंस ग्रुप ने अदालत में बताया कि गिरवी शेयरों की बिक्री से पहले उन्हें जरुरी मोहलत नहीं दी गई। वहीं कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में इस पर हैरानी जताते हुए कहा कि दोनों कंपनियों के बीच इस संबंध में कॉन्ट्रैक्ट हुआ था, ऐसे में नोटिस नहीं देने की बात का क्या औचित्य है। अभियोगी (रिलायंस ग्रुप) के दावे में छल की बू आ रही है। अभियोगी गुमराह करने की कोशिश कर रहे हैं।

कोर्ट ने आगे कहा कि “अभियोगी ने ब्याज का भुगतान नहीं किया, सुरक्षा अनुपात पर भी ध्यान नहीं दिया। साथ ही प्रतिवादियों के पत्र का जवाब भी नहीं दिया। अब अभियोगी कह रहे हैं कि कॉन्ट्रैक्ट में नोटिस पीरियड तर्कसंगत नहीं था?” मामले पर टिप्पणी करते हुए जस्टिस केआर श्रीराम ने कहा कि ‘प्रतिवादियों (Edelweiss Group Companies) ने जो किया, उसमें उन्हें कुछ भी गलत नहीं लगता है।’ न्यायाधीश ने कहा कि प्रतिवादी को कॉन्ट्रैक्ट के तहत मिले अधिकार और मौजूदा कानून के मुताबिक ऐसा करने से नहीं रोका जा सकता। बता दें कि 8 फरवरी को अनिल अंबानी ग्रुप ने कोर्ट में कहा था कि Edelweiss group और L&T Finance ने गैरकानूनी, और पूरी तरह से अनुचित कार्रवाई की, जिससे सिर्फ 4 दिनों के अंदर रिलायंस ग्रुप के बाजार पूंजीकरण में 13,000 करोड़ की गिरावट आयी है और कंपनी के शेयरधारकों को काफी नुकसान हुआ है।

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