महाराष्ट्र में ‘उज्ज्वला योजना’ का हाल, मोदी सरकार के तमाम दावों की पोल खोलती है जमीनी हकीकत

बीजेपी और पीएम मोदी जिस उज्वला योजना की जमीन पर वोट की फसल काटने की तैयारी कर रहे हैं, महाराष्ट्र में उसके लाभार्थियों की हालत ये है कि गरीबी, महंगाई और आय का साधन नहीं होने के कारण ज्यादातर लोग दोबारा सिलेंडर भरा ही नहीं सके और फिर से लकड़ी के चूल्हे पर खाना बनाने के लिए मजबूर हैं।

मोदी सरकार का पहला आधा हिस्सा उम्मीद जताती योजनाओं का रहा तो दूसरा इनकी कलई उतारने वाला। तमाम बड़ी-बड़ी योजनाएं लक्षित परिणाम पाने में विफल रही हैं। सरकार लाख बड़े-बड़े दावे कर ले, लेकिन इन योजनाओं के नाकाम रहने से आम लोगों में भारी निराशा और खीझ है। मोदी सरकार की इस बहुचर्चित उज्जवला योजना की देश भर में पड़ताल करती नवजीवन की विशेष श्रृंखला की इस कड़ी में आज पेश है महाराष्ट्र में इस योजना की जमीनी हकीकत।

महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में एक गांव है जिरी। इन दिनों यहां सूखे की भी छाया है। इसलिए इस गांव की सोनाबाई भवर नामक महिला को ज्यादा चिंता पानी की है और वह इसकी जुगाड़ के लिए टैंकर का इंतजार करती रहती हैं। उनके पति नेत्रहीन हैं। इस वजह से सोनाबाई पेट की आग बुझाने के लिए भी अकेली मशक्कत करती हैं। उनके पास इतने पैसे नहीं हैं कि वह उस सिलेंडर को दोबारा भरा सकें जो उन्हें उज्ज्वला योजना के तहत एक साल पहले मिला था। अब यह सिलिंडर यूं ही पड़ा है और सोनाबाई लकड़ी के चूल्हे पर खाना बनाने के लिए मजबूर हैं।

सोनाबाई को याद है कि उन्हें यह सिलिंडर सौ रुपये में मिला था। इसके साथ ही उन्हें उज्ज्वला का स्टीकर लगा गैस का कार्ड और चूल्हा भी मिला था। सोनाबाई का जिला बैंक में खाता है और पहली सितंबर तक उनके खाते में 576 रूपये जमा हैं। उनको मिलने वाला अनुदान बंद है। इसकी वजह उनको मालूम नहीं है।

मजे की बात यह है कि एक साल पहले गरीबी रेखा से नीचे की महिलाओं के लिए उज्ज्वला योजना तब शुरू की गई थी जब इलाके में जिला परिषद और पंचायत समिति के चुनाव होने वाले थे और चुनाव में बीजेपी को फायदा हुआ था। लेकिन सोनाबाई जैसी कई महिलाएं हैं जिनके घर में अब फिर से लकड़ी के चूल्हे जलने लगे हैं। जबकि सरकारी दावा है कि मराठवाड़ा में 5.91 लाख महिलाओं को उज्ज्वला योजना से जोड़ा गया है।

पूरे राज्य में सोनाबाई अकेली महिला नहीं हैं जिन्होंने सिलेंडर दोबारा नहीं भराया। मुंबई से सटे आदिवासी जिला पालघर में भी कई महिलाएं हैं जो अब खाना पकाने के लिए लकड़ी का इस्तेमाल कर रही हैं। वैशाली विष्णु लोखंडे के अनुसार वह दैनिक मजदूरी करके मुश्किल से अपने परिवार का पेट भरती हैं। इतने पैसे नहीं बचा पातीं कि सिलिंडर भरा सकें। उज्ज्वला योजना के तहत उन्हें जो सिलिंडर मिला, वह दो महीने से खाली है।

पालघर जिले में बीते तीन सालों के दौरान गरीबी रेखा से नीचे और आर्थिक रूप से कमजोर 99 हजार परिवारों को उज्ज्वला योजना का लाभ दिलाया गया। लेकिन जिले में अब यह योजना असफल साबित हो रही है। क्योंकि 20 फीसदी से अधिक महिलाओं ने सिलिंडर दोबारा नहीं भराया। लातूर जिले के खरोसा गांव की अयोध्या पंडित एकम्बे के मुताबिक उन्हें उज्ज्वला योजना का सिलिंडर तो मिला है लेकिन उनके खाते में सब्सिडी नहीं आ रही है। घर में कमाने वाली वह अकेली महिला हैं जिससे उनके पास इतने पैसे नहीं बचते कि वह महंगे सिलिंडर को दोबारा भरा सकें।

अब मजबूरी में वह लकड़ी के चूल्हे पर खाना बना रही हैं। ठाणे जिले में भी चौंकाने वाली स्थिति है। जिले में 31.17 हजार लाभार्थियों को उज्ज्वला योजना से जोड़ा गया। लेकिन 89 फीसदी लाभार्थी ने पैसे के अभाव में इस योजना से दूरी बना ली है। वैसे राज्य के कई इलाकों में गैस एजेंसी वालों की मनमानी की भी बातें सामने आ रही हैं।

नागपुर के वसंतराव नाईक शेती स्वालंबन मिशन के अध्यक्ष किशोर तिवारी की ओर से सरकार आपके द्वार कार्यक्रम का आयोजन किया गया था, जिसमें ग्रामीणों ने मुफ्त में गैस कनेक्शन देने की बजाए गैस वितरकों की ओर से 2500 से 3500 रुपये तक जबरन वसूलने की शिकायत की। गैस सिलिंडर भी 1200 से 1500 रुपये में रीफिल करने का खुलासा हुआ है।

ऐसा नहीं है कि राज्य सरकार उज्ज्वला योजना की नाकामी से वाकिफ नहीं है। केंद्रीय राज्य मंत्री हंसराज अहीर चंद्रपुर में अधिकारियों को कई बार कह चुके हैं कि उज्ज्वला योजना को सफल बनाएं और गरीब महिलाओं को लकड़ी के चूल्हे से निजात दिलाएं। लेकिन उनकी बातों का भी असर नहीं हुआ है। तीन सालों के दौरान राज्य में गरीबी रेखा से नीचे के 91 लाख परिवारों को उज्ज्वला योजना का लाभ मिलना है। इधर राज्य के खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री गिरीश महाजन इस बात से गदगद हैं कि अक्तूबर 2014 से दिसंबर 2018 के दौरान उज्ज्वला योजना लागू करके 4.4 करोड़ लीटर किरोसन तेल की बचत कर ली गई है।

उज्ज्वला योजना के लागू होने के बाद नवंबर 2018 तक 1.59 करोड़ राशन कार्ड पर गैस के स्टाम्प लगाए गए हैं। रसोई गैस के लाभार्थियों को किरासन तेल नहीं दिया जाता है। महाजन भले किरासन तेल बचाकर खुश हों लेकिन राज्य की बीजेपी सरकार को सियासी चिंता भी सता रही है।

इसलिए लोकसभा चुनाव होने से पहले राज्य के वित्त मंत्री सुधीर मुनगंटीवार ने स्वीकार किया कि राज्य में अब भी 45 लाख परिवार उज्ज्वला योजना के लाभ से वंचित हैं। सरकारी गेस्ट हाउस सह्याद्रि में आयोजित बैठक में उन्होंने अधिकारियों को आदेश दिया कि लाभार्थियों की सूची तैयार करके गणेशोत्सव से पहले गैस के कनेक्शन दिए जाएं। उन्होंने यह भी ऐलान किया कि उज्ज्वला योजना के तहत जो लाभार्थी गैस चालू रखने के लिए पैसे नहीं दे सकते हैं, उनके लिए जरूरी पैसे की व्यवस्था राज्य सरकार करेगी।

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