ब्रिटेन में ब्रेग्जिट के बाद कोष की कमी को लेकर आशंकित कुछ शीर्ष यूनिवर्सिटी ज्यादा बड़ी तादाद में विदेशी छात्रों को दाखिला दे सकती हैं। ऐसे में सबसे ज्यादा भारत और चीन के छात्रों को दाखिला मिलने की उम्मीद है। ब्रेग्जिट का मतलब ब्रिटेन का यूरोपीय संघ से बाहर निकलना है।
विदेशों से आने वाले छात्र स्थानीय छात्रों के मुकाबले बहुत अधिक फीस देते हैं। यूनिवर्सिटी प्रमुखों को उम्मीद है कि भारत और चीन के छात्र ब्रिटिश छात्रों से कहीं ज्यादा तादाद में दाखिला ले सकते हैं।
ग्लासगो यूनिवर्सिटी के कुलपति और रसेल ग्रुप के अध्यक्ष एंटोन मस्कटेली के हवाले से एक मीडिया रिपोर्ट में कहा गया कि प्रमुख यूनवर्सिटी में अब कई और विदेशी छात्रों को दाखिल करने की कोशिश कर सकती हैं। वे ब्रग्जिट के बाद सामने आने वाली वित्तीय चुनौतियों से निपटने के लिए ऐसा कर सकती हैं।
मस्कटेली यूके के 24 प्रमुख संस्थानों का प्रतिनिधित्व करते हैं। वह ग्लासगो यूनिवर्सिटी में यूरोपीय संघ और विदेशी छात्रों के अनुपात को बढ़ाकर कुल आधा करने पर विचार कर रहे हैं। उन्होंने कहा, कई यूनिवर्सिटी ऐसा करने की कोशिश करेंगी क्योंकि यह आय में अचानक गिरावट का जवाब देने का एकमात्र तरीका होगा।
रिपोर्ट के अनुसार, ब्रिटेन अगर किसी समझौते के बिना यूरोपीय संघ से बाहर हो जाता है तब ब्रिटेन का उच्च शिक्षा क्षेत्र गंभीर समस्याओं का सामना करेगा। यूनिवर्सिटी के नेताओं का कहना है कि यह भयावह होगा। यूरोपीय संघ की ओर से अनुसंधान के लिए 1.3 अरब पाउंड का वित्तपोषण रुक जाएगा। साथ ही यूरोपीय संघ के छात्रों की संख्या में गिरावट आएगी।
इसके अलावा, उम्मीद है कि फीस कम करने के लिए यूनिवर्सिटी ब्रिटिश अंतर स्नातकों से प्रति वर्ष 6,500 पाउंड से कम शुल्क लेगी।
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