राजस्थान: गहलोत ने सीएम, पायलट ने डिप्टी सीएम पद की ली शपथ, समारोह में राहुल के साथ विपक्षी दलों के नेता शामिल

राजस्थान में अगले मुख्यमंत्री के रूप में अशोक गहलोत शपथ ली। राज्यपाल कल्याण सिंह उन्हें शपथ दिलाई। इसी के साथ वह राज्य के तीसरी बार मुख्यमंत्री बन गए हैं। उनके साथ उपमुख्यमंत्री के रूप में सचिन पायलट ने भी शपथ ली।

राजस्थान में कांग्रेस की सरकार बन गई है। जयपुर में राजस्थान के मुख्यमंत्री के तौर पर अशोक गहलोत ने शपथ ली। वहीं कांग्रेस नेता सचिन पायलट भी डिप्टी सीएम पद की शपथ ली। प्रदेश के राज्यपाल कल्याण सिंह उन्हें पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई। इस दौरान कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, पूर्व पीएम मनमोहन सिंह, मल्लिकार्जुन खड़गे, राज बब्बर,नवजोत सिंह सिद्धू समते पार्टी के कई बड़े नेताओं ने शिरकत की। कई दूसरे दलों के नेता भी शपथ ग्रहण में हुए शामिल। वहीं विपक्षी एकता के प्रदर्शन के रूप में फारूख अब्दुल्ला, एमके स्टालिन, एचडी देवगौड़ा, एनसीपी नेता शरद पवार, बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव, और दानिश अली मंच पर मौजूद रहे।

अशोक गहलोत का सफरनामा

तीसरी बार राजस्थान के मुख्यमंत्री की शपथ लेने वाले अशोक गहलोत माली समाज से आते हैं, जो पिछड़ा वर्ग में आता है। गहलोत के परिवार का खानदानी पेशा किसी जमाने में जादूगरी का करतब दिखाना था। गहलोत के पिता भी एक जादूगर थे। लिहाजा अशोक गहलोत ने भी जादूगरी में हाथ आजमाया, लेकिन राजनीति के मंच पर और राज्य के ऐसे सबसे बड़े नेता बनकर उभरे, जिसका जादू समाज के हर वर्ग पर चलता है।

अशोक गहलोत का जन्‍म 3 मई 1951 को राजस्थान के जोधपुर में हुआ। गहलोत ने विज्ञान और कानून में स्‍नातक और अर्थशास्‍त्र में एमए की डिग्री हासिल की। छात्र जीवन से ही समाजसेवा और राजनीति में सक्रिय रहे गहलोत का विवाह 27 नवंबर, 1977 को सुनीता गहलोत से हुआ। एक पुत्र वैभव गहलोत और एक पुत्री सोनिया गहलोत के पिता गहलोत को घूमना-फिरना काफी भाता है और कहीं भी सड़क पर कड़क चाय पीने के शौकीन हैं।

सामाजिक जीवन की की बात करें तो गहलोत ने बांग्‍लादेश युद्ध के दौरान 1971 में पश्चिम बंगाल के बनगांव और 24 परगना जिलों में शरणार्थी शिविरों में पीड़ितों की सेवा से शुरुआत की। इसके बाद राजनीतिक जीवन कांग्रेस के छात्र संगठन एनएसयूआई से शुरू हुआ। कहा जाता है कि 70 के दशक में गहलोत पर खुद इंदिरा गांधी की नजर पड़ी थी। कुछ लोगों के अनुसार उस समय 20 साल के रहे गहलोत को इंदिरा गांधी ने राजनीति में आने की सलाह दी। जिसके बाद गहलोत ने कांग्रेस के इंदौर में हुए सम्मेलन में हिस्सा लिया और वहीं उनकी मुलाकात संजय गांधी से हुई। संजय गांधी, गहलोत की क्षमता से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उन्हें राजस्थान एनएसयूआई का अध्यक्ष बना दिया। गहलोत 1973 से 1979 तक राजस्‍थान एनएसयूआई के अध्‍यक्ष रहे और इस दौरान उन्‍होंने संगठन को काफी मजबूत कर दिया। इसके बाद गहलोत कांग्रेस के जोधपुर जिला अध्यक्ष बने और फिर प्रदेश कांग्रेस के महासचिव भी बनाए गए।

गहलोत ने अपना पहला चुनाव 1980 में जोधपुर लोकसभा क्षेत्र से लड़ा और जीत दर्ज किया। जोधपुर से वह पांच बार 1980-1984, 1984-1989, 1991-96, 1996-98 और 1998-1999 लोकसभा पहुंचे। इस दौरान गहलोत राज्य और केंद्र की सरकारों में मंत्री रहने के साथ ही पार्टी संगठन में सक्रिय रहे। गहलोत को 3 बार राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्‍यक्ष रहने का गौरव प्राप्‍त है। पहली बार गहलोत महज 34 साल की उम्र में ही राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्‍यक्ष बनाए गए थे। गहलोत ने 1985 से 1989, 1994 से 1997 और 1997 से 1999 के बीच राजस्‍थान कांग्रेस का अध्यक्ष पद संभाला।

संगठन से लेकर सरकार में अनुभव के कारण ही पार्टी ने 1998 में गहलोत को राज्य के मुख्यमंत्री की कमान पहली बार सौंपी। उनका यह कार्यकाल अन्‍य महत्‍वपूर्ण उपलब्धियों के अलावा अभूतपूर्व अकाल प्रबंधन के लिए जाना जाता है। इसी कार्यकाल के दौरान राजस्‍थान में सदी का सबसे भयंकार अकाल पड़ा था। कहा जाता है कि गहलोत के प्रभावी और कुशल प्रबंधन से अकाल पीड़ितों तक इतना अनाज पहुंचाया गया, जितना अनाज वे लोग शायद अपने खेतों से भी नहीं हासिल कर पाते। गहलोत को गरीब-असहाय लोगों की पीड़ा को समझने वाले राजनेता के रूप में जाना जाता है। यही वजह थी कि अशोक गहलोत 13 दिसंबर 2008 को दूसरी बार राजस्‍थान के मुख्‍यमंत्री बने।

राजस्थान की राजनीति के सबसे अहम जातीय वर्चस्व को तोड़ एक कमजोर माने जाने वाले समाज से आए अशोक गहलोत वर्तमान में राजस्थान की राजनीति में सबसे बड़े जननेता हैं। गहलोत की विनम्रता के उनके विरोधी भी कायल हैं। ये उनकी विनम्रता का ही जादू है कि राजस्थान जैसे प्रदेश में जहां की राजनीति में क्षत्रिय, जाट, गुर्जर और ब्राह्मण हमेशा से प्रभावी रहे हैं, वहां पिछड़ा माने जाने वाले समाज के गहलोत ने अपने आपको सबसे बड़े नेता के रूप में स्थापित किया। अब अब उन्होंने तीसरी बार राज्य के सीएम पद की कमान संभाल ली है।

सचिन पायलट का सफरनामा

साल 2004 में अपने पिता के निर्वाचन क्षेत्र दौसा से 26 वर्ष की आयु में सांसद चुने गए सचिन संसद के सबसे युवा सदस्य बने थे। दूसरी बार वह 2009 में अजमेर सीट से लोकसभा के लिए चुने गए थे। दो बार सांसद रहे सचिन पायलट ने अपना पहला विधानसभा चुनाव दिसंबर में टोंक सीट से लड़ा और जीत हासिल की। पायलट ने इस चर्चित सीट पर भाजपा प्रत्याशी और वसुंधरा राजे सरकार में कदृावर मंत्री रहे युनुस खान को हराया। सचिन पायलट यूपीए सरकार में मंत्री और विभिन्न संसदीय समितियों के सदस्य रह चुके हैं। उन्हें 2008 में विश्व आर्थिक मंच (वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम) ने यंग ग्लोबल लीडरों में भी चुना था।

उनका जन्म सात सितंबर 1977 को हुआ था। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रख्यात सेंट स्टीफेंस कॉलेज से अंग्रेजी साहित्य में स्नातक की उपाधि हासिल की। उन्होंने बीबीसी के दिल्ली ब्यूरो में और फिर जनरल मोटर्स कॉरपोरेशन में काम किया। उन्होंने व्हार्टन बिजनेस स्कूल (पेनसिलवेनिया विश्वविद्यालय) से ‘बहुराष्ट्रीय प्रबंध एवं वित्त में एमबीए किया है।

सचिन की शादी नेशनल कांफ्रेंस नेता फारूक अब्दुल्ला की बेटी सारा से हुयी थी। उनके दो बेटे भी हैं। सचिन ने विमान उड़ाने के लिए पायलट का अपना निजी लाइसेंस 1995 में अमेरिका से हासिल किया था। उनकी खेलों में भी रूचि रही है और कई राष्ट्रीय शूटिंग प्रतिस्पर्धाओं में उन्होंने दिल्ली का प्रतिनिधित्व भी किया है।

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