अमेरिका के खाद्य एवं औषधि प्रशासन (USFDA) के एक शोध में कैंसर और रेडियो फ्रीक्वेंसी रेडिएशन (RFR) के उच्च स्तरों के बीच संबंध पाया गया गया है। शोध की अंतिम रिपोर्ट के अनुसार, 2जी व 3जी फोन में इस्तेमाल होने वाली रेडियो फ्रीक्वेंसी की उच्च दरें चूहों में कैंसर बनने वाले ट्यूमर्स पैदा करती हैं। प्रभावित चूहों के दिमाग और अधिवृक्क ग्रंथि में ट्यूमर्स होने के सबूत भी मिले हैं। यह शोध 10 साल पहले शुरू हुआ था, जब अमेरिका के नेशनल टॉक्सिकोलॉजी प्रोग्राम(NTP) को RFR के प्रभावों पर शोध के लिए नामित किया गया था। यह कार्यक्रम अमेरिकी नेशनल इंस्टीट्यूट्स ऑफ हेल्थ के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एनवायर्नमेंटल हेल्थ साइंसेज के तहत शुरू किया गया था।
रिपोर्ट के अनुसार, NTP ने शोध में चूहों को जितने रेडिएशन में रखा, वह औसत सेलफोन के इस्तेमाल से होने वाले रेडिएशन से कहीं ज्यादा था। NTP के वरिष्ठ वैज्ञानिक जॉन बुशर ने कहा, ”’शोध में प्रयोग हुए जोखिम को मानवों द्वारा सेलफोन इस्तेमाल किए जाने के दौरान मौजूद जोखिम से सीधे तौर पर नहीं जोड़ा जा सकता। हमारे शोध में, चूहों और चुहियों के पूरे शरीर को रेडिएशन के दायरे में रखा गया। इसके उलट, लोग जब हाथ में फोन पकड़ते हैं तो अधिकतर आस-पास के टिश्यूज (ऊतकों) पर रेडिएशन का प्रभाव होता है।” उन्होंने कहा, ”लोग जितना अनुभव करते हैं, उससे कहीं ज्यादा स्तर का रेडिएशन, कहीं ज्यादा समय तक हमारे प्रयोग में इस्तेमाल किया गया।
रिपोर्ट के अनुसार, सेलफोन यूजर्स के लिए रेडिएशन की जो अधिकतम मात्रा तय की गई है, वह इस प्रयोग में न्यूनतम रखी गई। आमतौर पर सेलफोन के इस्तेमाल से इतना रेडिएशन दुर्लभ है। इस प्रयोग में अनुमन्य अधिकतम ऊर्जा स्तर से चार गुना एक्सपोजर का इस्तेमाल किया है।
शोध के लीड टॉक्सिकोलॉजिस्ट माइकल वेड ने कहा, ”हमारे शोध का मजबूत पहलू यह रहा कि हम जानवरों पर इस्तेमाल किए जाने वाले रेडिएशन की मात्रा नियंत्रित करने के में सफल रहे। यह तब संभव नहीं हो पाता जब इंसान के सेलफोन इस्तेमाल करने पर शोध होता है।
यह शोध तब शुरू हुआ था जब 2जी और 3जी नेटवर्क बहुतायत में थे। अभी भी उनका इस्तेमाल कॉल्स और टेक्स्ट के लिए होता है। इस शोध में वाई-फाई और 5जी नेटवर्क्स के लिए इस्तेमाल होने वाले RFR की जांच नहीं की गई।
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