तिनसुकिया नरसंहार: गवाहों ने कहा- किसानों को लाइन में खड़ा कर पीछे से मारी गोलियां, एक ने गड्ढे में कूद बचाई जान

असम के तिनसुकिया जिले का बिसोनीमुख गांव 1 नवंबर को गोलियां की तड़तड़ाहट से गूंज उठा। सेना जैसी वर्दी और घातक हथियारों से लैस छह बदमाश दो मोटरसाइकिल पर बैठ ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे पहुंचे। उन्‍होंने बंगाली-भाषी वाले छह पुरुषों को चिन्हित किया, उन्‍हें एक जलधारा पर बने पुल पर ले गए, दूसरी तरफ देखने को कहा और पीछे से गोलियां बरसा दीं। पुलिस अधीक्षक पीएस चांगमई ने द इंडियन एक्‍सप्रेस को बताया, ”मौके से एके-47 के कम से कम 38 खाली कार्ट्रिज बरामद हुई हैं। इस जघन्य घटना में पांच लोग मारे गए, सिर्फ 17 साल के शादेब नामशूद्र ही जिंदा बचे हैं क्‍योंकि वह उसी जलधारा में गिर गए थे। मारे गए सभी लोग सब्जियां उगाने वाले काश्‍तकार थे। पुलिस अधिकारियों ने इसमें उग्रवादी संगठन उल्फा का हाथ होने की आशंका जताई थी, मगर उसने इस हमले की जिम्मेदारी लेने से इंकार कर दिया।

मृतकों की पहचान श्‍यामलाल बिस्‍वास (60), अनंत बिस्‍वास (18), अभिनाश बिस्‍वास (25), सुबल दास (60) और धनंजय नामशूद्र (23) के रूप में हुई। शादेब के अलावा, अभिनाश की पत्‍नी उर्मिला (21), उसका छोटा भाई सुशेन(22) और बिस्‍वास परिवार के घर आई मेहमान जनमनि सोनोवाल नायक (20) गवाही देने को तैयार हैं। नायक के अनुसार, चार लोग घर में घुसे, अनंत और शादेब से साथ चलने को कहा। नायक ने कहा, ”वे (हमलावर) असमी में बोल रहे थे, उन्‍होंने कहा कि उन्‍हें कुछ बात करनी है। बोले कि बातचीत के बाद उन्‍हें वापस आने दिया जाएगा।”

अपनी बेटी के साथ बाहर खेल रहे अभिनाश को भी साथ आने को कहा गया। उर्मिला ने बताया, ”मेरे पति ने बेटी को मुझे थमाया और चले गए। सबने सोचा कि वह लोग सैनिक हैं क्‍योंकि उन्‍होंने कपड़े ही ऐसे पहन रखे थे।” उर्मिला, नायक और सुशेन उन लोगों के पीछे भागे। नायक ने कहा, ”उन्‍होंने हमें अपनी बंदूकों से मारने की धमकी दी…हमको वापस जाने को कहा। हम डर गए और घर लौट आए।”

उन्‍होंने अभिनाश और अनंत के पिता मोहनलाल को जगाया। मोहनलाल के अनुसार, ”मैंने अपनी टॉर्च उठाई और दरवाजे की तरफ भागा, लेकिन कोई दिखा नहीं। शायद वह पुल तक पहुंच चुके थे। कुछ मिनटों बाद, हमने तेज आवाजें सुनीं, पटाखों जैसी।” गांववालों का कहना है कि श्‍यामलाल को उसी दुकान से उठाया गया, जबकि सुबल और धनंजय को सड़क से पकड़ा गया।

मोहनलाल ने बताया, ”कुछ गांववाले जुटे और पुल की तरफ बढ़े। हमें तीन लोग मृत मिले, जबकि श्‍यामलाल और सुबल खून से लथपथ थे। शादेब जलधारा में बेहोश पड़ा था। मेरे भाई श्‍यामलाल के शरीर में चार गोलियां धंसी थीं।”

नरसंहार में बच गए नामशूद्र ने कहा, “शाम लगभग 7.45 बजे सेना की वर्दी में कुछ लोग हमारी दुकान पर आए। उन्होंने हमें बाहर बुलाया और पास में ले गए। उन्होंने हमें कतार में खड़े होने को बोला और कहा कि वे हमसे कुछ पूछना चाहते हैं।” उन्होंने कहा, “हमें कतार में खड़े होना था। अचानक मुझे गोली चलने की आवाज सुनाई दी। मैं वहीं एक गड्ढे में कूद गया। वहां कुछ धुंआ था और मुझे बंदूक चलने की कुछ और आवाजें सुनाई दीं। वहां चीख-पुकार मच गई। मैं 10 मिनट तक वहां अंधेरे में पड़ा रहा।” उन्होंने कहा, “वहां मैंने जब अपने समूह के अन्य लोगों को ढूंढ़ा, तो मुझे वहा जमीन पर किसी को पड़ा देखा।”

नामशूद्र ने कहा, “मैं अपने घर की तरफ भागा। मैंने सिर्फ अन्य पांच लोगों के रक्तरंजित शवों को तलाशने के लिए अन्य लोगों को बुलाया।” उनके अनुसार, वे उग्रवादी थे और असमी भाषा में बातें कर रहे थे। उन्होंने कहा, “लेकिन हमारे सामने उन्होंने हिंदी में बात की। मैं कतार की दूसरी तरफ कूदने के कारण बच गया। वहां अंधेरा था वे शायद मुझे कूदते हुए नहीं देख सके।”

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