मोदी के ‘कैशलेस इंडिया’ की खुली पोल, नोटबंदी के बाद घटने के बजाए दोगुना हुआ ‘कैश’ का चलन

मोदी सरकार का सबसे बड़ा कदम ‘नोटबंदी’ हर तरह से नाकामयाब हो गया है| नोटबंदी के दो उद्देश्य थे। पहला कालेधन को खत्म करना और दूसरा कैशलेस अर्थव्यवस्था की ओर कदम बढ़ाना।

पहला उद्देश्य पूरा होने का सपना तभी टूट गया था जब आरबीआई ने 99 फीसदी नोटों के सिस्टम में वापस आने की पुष्टि की थी। वहीं हालिया जानकारी से यह भी साबित हो गया कि नोटबंदी का दूसरा उद्देश्य भी फेल हो गया है।

देश में इस समय जनता के पास नकदी का स्तर 18.5 लाख करोड़ रुपए से ऊपर पहुंच गया है। यह न सिर्फ अब तक का सबसे ज्यादा है, बल्कि नोटबंदी के बाद की स्थिति के मुकाबले दोगुने से भी ज्यादा है।

रिजर्व बैंक के ताजा आंकड़ों में ये जानकारी सामने आई है। एक जून 2018 की स्थिति के मुताबिक देश में कुल 19.3 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा नकदी चलन में है। नोटबंदी के बाद जनता के हाथ में नकदी घटकर 7.8 लाख करोड़ रुपए रह गई थी।

रिजर्व बैंक ‘चलन में मुद्रा’ के आंकड़े हर हफ्ते और ‘जनता के पास नकदी’ के आंकड़े हर पखवाड़े जारी करता है। चलन में मौजूद कुल मुद्रा में से बैंकों के पास पड़ी नकदी को घटा देने पर पता चलता है कि चलन में कितनी मुद्रा लोगों के हाथ में पड़ी है।

आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि मई 2014 में मोदी सरकार के आने से पहले लोगों के पास लगभग 13 लाख करोड़ रुपये की मुद्रा थी। एक वर्ष में यह बढ़कर 14.5 लाख करोड़ से अधिक और मई 2016 में यह 16.7 लाख करोड़ हो गई।

आरबीआई के मुताबिक, कुल 15.44 लाख करोड़ रुपये की अमान्य मुद्रा में से 30 जून 2017 तक लोगों ने 15.28 लाख करोड़ रुपये की मुद्रा बैंकों में जमा करवाई।

 

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