मोदी सरकार द्वारा ईवीएम मशीनों में गड़बड़ी करने के आरोप और ज़्यादा बढ़ सकते हैं। केंद्र की मोदी सरकार चाहती थी कि चुनाव आयोग वीवीपैट मशीनें प्राइवेट कंपनियों से खरीदे। चुनाव आयोग ने सरकार से कहा है कि अगर ऐसा होता है तो आम आदमी के विश्वास को ठेस पहुंचेगी।
पिछले दिनों कई राज्यों में चुनाव नतीजों के बाद ईवीएम मशीनों से छेड़छाड़ के आरोप लगे। इसके बाद चुनाव आयोग ने सभी ईवीएम मशीनों के साथ वीवीपैट लगाने का फैसला किया।
वीवीपैट मशीनें ईवीएम में बटन दबाने के बाद वोट देने वाले के सामने पर्ची निकालकर ये सुनिश्चित करती हैं कि वोट उसी को गया है जिसे मतदाता देना चाहता है। चुनाव नतीजों में गड़बड़ी का आरोप लगने पर वीवीपैट की पर्चियों को गिनकर शक भी दूर किया जा सकता है।
2013 में सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव में वीवीपैट का इस्तेमाल करने का आदेश दिया था। जिसके बाद चुनाव आयोग ने कहा था कि वह 2019 लोकसभा चुनाव तक वीवीपैट की व्यवस्था शुरू कर देंगे।
ईवीएम मशीनों पर देशभर में मचे बवाल के बावजूद केंद्र की मोदी सरकार बाज़ नहीं आ रही है। केंद्र सरकार ने चुनाव आयोग से कहा था कि उन्हें वीवीपैट प्राइवेट सेक्टर से लेना चाहिए। अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार, ये खुलासा एक आरटीआई के कारण हुआ है।
कानून मंत्रालय ने जुलाई-सितंबर, 2016 में चुनाव आयोग को तीन चिट्ठियां लिखकर ये सुझाव दिया था। जिसका जवाब देते हुए 19 सितंबर, 2016 को चुनाव आयोग ने कहा कि प्राइवेट मैन्यूफैक्चर को इस काम की जिम्मेदारी नहीं सौंपी जा सकती है। गौरतलब है कि उस दौरान नसीम ज़ैदी मुख्य चुनाव आयुक्त थे।
ईवीएम और वीवीपैट मशीन को शुरू से भारत में दो ही सरकारी उपक्रम सप्लाई करते हैं, जिसमे भारत इलेक्ट्रॉनिक लिमिटेड जोकि बेंगलुरू में स्थित है और दूसरा इलेक्ट्रॉनिक कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड हैदराबाद शामिल है। इन दोनों कंपनियों के अलावा चुनाव आयोग किसी अन्य प्राइवेट कंपनी से यह मशीन नहीं लेता है।
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