कर्नाटक विधानसभा चुनाव: कांग्रेस के लिए बड़ी खुशखबरी सिद्धारमैया का 1.0 वर्जन से दमदार हो सकता है 2.0 वर्जन

भीड़ के बीच हमेशा अच्छा प्रदर्शन करने वाले सिद्धारमैया अपने नए अवतार में ज्यादा जुझारू हैं और खेल के नए मैदान सोशल मीडिया में भी काफी अच्छा कर रहे हैं

 27 मार्च को चुनाव आयोग द्वारा कर्नाटक विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान किए जाने के बाद अमित शाह प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रहे थे वहां बीएस येदियुरप्पा भी मौजूद थे। शाह ‘सुप्रीम कोर्ट के एक रिटायर्ड जज का हवाला देते हुए बोल रहे थे कि भ्रष्टाचार के लिए अगर स्पर्धा कर दी जाए तो येदियुरप्पा सरकार को भ्रष्टाचार में नंबर वन सरकार का अवार्ड मिलना चाहिए.’ अमित शाह की ऐसे मौके पर जुबान फिसली की सिद्धारमैया ने किस्मत से मिले नंबर बनाने के इस मौके को लपक लिया और फौरन ही उनके ट्विटर हैंडल पर हैशटैग के साथ यह वीडियो दिखने लगा ‘#झूठों के शाह ने आखिरकार सच बोला’

कर्नाटक में इस बार बीजेपी और कांग्रेस के बीच मुख्य मुकाबला है। यहां इस समय कांग्रेस की सरकार है, कांग्रेस कर्नाटक में अपनी सत्ता बरकरार रखना चाहती है। वहीं, दूसरी तरफ बीजेपी कांग्रेस के हाथ से एक और राज्य छीनने की कोशिश में लगी हुई है। कर्नाटक में चुनावी बिगुल बज चुका है। यहां 12 मई को वोटिंग होगी है और 18 मई को नतीजे घोषित किए जाएंगे। वहीं, इसी बीच कांग्रेस के लिए एक बड़ी खुशखबरी आई है।

पार्टी के आंतरिक सर्वे में कांग्रेस को 126 सीटें मिलने की उम्मीद की गई है, जो 2013 से 4 सीटें ज्यादा हैं, वहीं भाजपा को 70 सीटें मिलने का अनुमान जताया गया है जो पिछली बार से करीब 30 सीटें ज्यादा होंगी, वहीं जद (एस) को केवल 27 सीटें मिलने की बात कही जा रही है। सर्वे के अनुसार, सीएम सिद्धरमैया की सत्ता में वापसी हो रही है। येद्दियुरप्पा से ज्यादा लोकप्रिय सिद्धरमैया को बताया गया है।

यह सर्वे 1 मार्च से 25 मार्च तक करवाया है

सी-फोर ने राज्य की 154 सीटों पर यह सर्वे 1 मार्च से 25 मार्च तक करवाया है। सी-फोर ने 2013 के विधानसभा चुनावों में भी सर्वे करवाया था जिसमें उसने कांग्रेस को 119-120 सीटें मिलने का अनुमान जताया था जबकि उसको 122 सीटें मिली थीं। कांग्रेस के सर्वे में सिद्धरमैया को भाजपा के मुख्यमंत्री उम्मीदवार बी.एस. येद्दियुरप्पा से भी कहीं आगे पाया गया है। दोनों नेताओं के बीच 19 प्रतिशत का अंतर देखने को मिला है।

यह सिद्धारमैया का नया अवतार है. आईटी सिटी बेंगलुरू की जुबान में कहें तो उनका 2.0 वर्जन. हालांकि यह जगजाहिर है कि सीएम के एकाउंट का काम एक 24×7 सक्रिय रहने वाली टीम संभालती है, लेकिन इसने सिद्धारमैया को लंबे समय से मनचाहा मेकओवर दे दिया. भीड़ के बीच हमेशा अच्छा प्रदर्शन करने वाले सिद्धारमैया अपने नए अवतार में ज्यादा जुझारू हैं और खेल के नए मैदान सोशल मीडिया में भी काफी अच्छा कर रहे हैं. उनके हमलावर तेवर, कटाक्ष और हास्यबोध से भरे ट्वीट्स ऐसा असर छोड़ रहे हैं कि वह आमने-सामने मुकाबला करने को उत्सुक हैं.

 

यह उस शख्स के लिए बड़ा बदलाव है जो चंद दिनों पहले तक सिर्फ एक देहाती राजनेता माना जाता था, जो संभ्रांत लोगों और ट्विटर वाली पीढ़ी के बीच घुलने-मिलने के बजाय देहाती माहौल में ज्यादा सहज रहता है. यह पंजाब में कैप्टेन अमरिंदर सिंह द्वारा अपनाई गई रणनीति से अलग है. ‘कॉफी विद कैप्टेन’ स्ट्रेटजी ने पंजाब के ग्रामीण और कस्बाई इलाकों में काम किया था, जबकि टेक्नोलॉजी पसंद कर्नाटक में, आभासी संसार से हमेशा जुड़े रहना भी उतना ही जरूरी है जितना वास्तविक संसार से.

सिद्धारमैया की ऑनलाइन निपुणता ने भारत में कांग्रेस के चार मुख्यमंत्रियों की जमात में उनका दर्जा कुछ ऊपर उठा दिया है, जो राष्ट्रीय एजेंडा तय करता है. दक्षिण भारतीय राज्यों को लेकर भेदभाव का मुद्दा उठाने वाली उनकी फेसबुक पोस्ट और बाद में एक ट्वीट में मुख्यमंत्रियों को टैग किए जाने ने, उन्हें दक्षिणी गठजोड़, एक तरह के प्रेशर ग्रुप, के नेतृत्व की स्थिति प्रदान की है.

मुख्यमंत्री ने इस लड़ाई को सिद्धारमैया बनाम नरेंद्र मोदी व शाह बना दिया है. इससे कांग्रेस को एक तीर से दो शिकार करने का मौका मिल गया. इसका मतलब है कि राहुल गांधी को हर हमले का अकेले सामना नहीं करना पड़ेगा, जैसा कि गुजरात चुनाव प्रचार के दौरान हुआ था. सिद्धारमैया के रूप में कांग्रेस अध्यक्ष के पास एक दमदार कमांडर है, जबकि गुजरात में पार्टी ने हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवाणी और अल्पेश ठाकोर की तिकड़ी को अपनी लड़ाई आउटसोर्स कर दी थी. दूसरा इन्होंने येदियुरप्पा, वह शख्स जो मुख्यमंत्री बनने का दावेदार है, उसको सपोर्टिंग रोल में सीमित कर दिया है. सिद्धारमैया की राजनीतिक मुक्केबाजी के सामने येदियुरप्पा लगातार बचाव की मुद्रा में हैं, ऑनलाइन भी और ऑफलाइन भी.

 

मजे की बात है कि एक साल पहले तक येदियुरप्पा पक्के तौर पर यकीन करते थे कि सिद्धारमैया के प्रभारी रहते बीजेपी के लिए मई 2018 में विधानसभा में वापसी सुबह की सैर जैसा आसान काम होगा. इसका कारण यह था कि मुख्यमंत्री एक खंडित छवि वाले शख्स थे, जो बेंगलुरू में झील में बार-बार आग लगने जैसे मुद्दों से जूझ रहा था और एक ऐसी पार्टी में अंदरूनी लड़ाइयों से घिरा हुआ था, जो किसी भी राज्य में चुनाव नहीं जीत पा रही थी.

यह सब अब काफी कुछ बदल चुका है. लगातार दूसरी अवधि के लिए चुनाव जीतना, जो कर्नाटक में 1985 से कोई मुख्यमंत्री नहीं कर सका, इस चुनौती ने सिद्धारमैया को सक्रिय कर दिया. इसका पता उन पर किए जाने व्यक्तिगत हमलों से चलता है, जैसे कि योगी आदित्यनाथ उनके हिंदू होने पर सवाल उठाते हैं, क्योंकि उन्होंने कर्नाटक में गोहत्या पर पाबंदी नहीं लगाई. सिद्धारमैया ने इसका जवाब देने में देरी नहीं लगाई, अपने नाम में ‘रामा’ की तरफ इशारा करते हुए बताया कि वह भी बीजेपी के किसी भी नेता जैसे ही अच्छे हिंदू हैं. बीजेपी ने इसके बाद उन्हें तटीय कर्नाटक में मुसलमानों का पक्ष लेने के लिए ‘जेहादी सीएम’ करार दिया.

 

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